Book Title: Lakshya Banaye Safalta Paye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 51
________________ चार गुना 'हो' की ध्वनि लौटकर आएगी। ऐसे ही अगर अपने द्वारा औरों के प्रति प्रेम के गीतों को बुलंद करोगे, तो तुम पर प्रेम की ही बौछारें होंगी। अगर दूसरों से हमारा अच्छा और भला किया कहोगे कि मैं तुमसे नफ़रत करता हुआ कभी व्यर्थ नहीं जाने वाला। हूं, तो यह जगत तुम पर चारों तरफ़ चाहे हमारे विचार हों या व्यवहार, से नफ़रत के शोले बरसाना शुरू कर काम हो या निर्माण, वे आज देगा। वहीं अगर तुम अपनी ओर से औरों के प्रति प्यार करने के भाव नहीं तो कल तेज़ी से लौट आने वाले हैं। मुखरित करोगे, तो ताज्जुब करोगे -जिएं, तो ऐसे जिएं कि हर काइ तुमस प्यार करने का लालायित नज़र आएगा। अगर कोई व्यक्ति आपसे गाली-गलौज कर रहा है, तो उसे बेवकूफ न समझें। दरअसल किसी के द्वारा मिलने वाली गालियां पूर्व में हमारी ओर से दी गई गालियों का प्रत्यावर्तन ही है। तुम अपनी ओर से जैसी सौयात दोगे, वैसी ही तुम बदले में पाओगे। पात्र बदल जाते हैं, निमित्त और चेहरे बदल जाते हैं, मगर कुदरत हिसाब बकाया नहीं रखती, वह सूद समेत लौटाती है। अगर आज आपने गुलाबचंद को गाली दी है, तो हो सकता है कि वह आपको गुलाबचंद के मुंह से गाली न निकलवाए, गुमानमल द्वारा गाली लौटा दे। जैसा तुम बोओगे, वैसा ही काटने को मिलेगा। धर्मशास्त्रों में लिखे हुए कर्म के सिद्धांत का इतना-सा ही रहस्य है। मूल्य है स्वयं की दृष्टि का दुनिया वैसी नहीं दिखती, जैसा कि हम उसे देखना चाहते हैं। दुनिया हमेशा वैसी ही दिखाई देती है, जैसे कि आप स्वयं होते हैं। एक बुद्धिमान व्यक्ति किसी गांव के बाहर रहा करता था। उधर से गुजरने वाले राहगीर उस गांव के बारे में उसी से सवाल-जवाब किया करते थे। ऐसे ही एक राहगीर उधर से गुज़रा। उसने रुककर बुद्धिमान व्यक्ति से बातचीत करनी चाही। उसने प्रश्न किया, 'महानुभाव, क्या तुम मुझे यह बताना चाहोगे कि इस गांव के लोग कैसे हैं? दरअसल मैं दूसरे गांव में बसने की सोच रहा हूं।' 50 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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