Book Title: Lakshya Banaye Safalta Paye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 53
________________ संकल्प हो सद्व्यवहार का तुम जैसे होते हो, वैसा ही तुम्हारे लिए जगत बन जाता है । प्रसन्न हृदय से अगर जगत को देखो, तो सारा जगत मुस्कराता हुआ दिखाई देगा और अगर रोते हुए चेहरे के साथ जगत को देखो, तो सारा जगत रुंआसा, आंसू ढलकाता नज़र आएगा। यह तुम्हारी क्रिया की प्रतिक्रिया, छाया की प्रतिच्छाया, ध्वनि की प्रतिध्वनि है । अगर चाहते हो कि औरों द्वारा हमारे प्रति सद्व्यवहार हो, तो अपनी ओर से दृढ़प्रतिज्ञ बनो कि मैं अपनी ओर से किसी के प्रति दुर्व्यवहार नहीं करूंगा। अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारे पिता अपना सारा प्यार तुम पर उंडेल दें, तो तुम भी अपना सारा सम्मान, संपूर्ण श्रद्धा उनके चरणों में समर्पित कर दो। हम याद करें उस दृश्य को जब महावीर के कानों में कीलें ठोकी गईं थीं। वे कीलें अकारण नहीं ठोकी गई थीं । यह महावीर की क्रिया की प्रतिक्रिया थी । महावीर ने अपने पूर्व जन्म में अपने ही अंगरक्षक के कानों में खौलता हुआ शीशा डलवा दिया था। इस जन्म में रूप बदल गया, वेश बदल गया, लेकिन कर्म-बंधन नहीं बदले । आज अगर कोई तुम्हारी निंदा कर रहा है, तो बड़े धीरज से उसे पचा लो, क्योंकि तुमने कभी किसी की निंदा की होगी। आज हमें लगता है कि हमारे घर में किसी छोटे बच्चे की मौत हो गई है, तो हम यही मानकर चलें कि हमने भी कभी किसी छोटे बच्चे की मौत का निमित्त अपने द्वारा खड़ा किया होगा । यह आसमान हमें इसीलिए गोल दिखाई देता है कि हमें लौटाया जा सके वह सब कुछ, जो हमने अपनी ओर से ब्रह्मांड की ओर फेंका है। क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि बड़े-बड़े मंदिरों के गुंबद गोल क्यों होते हैं? इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य है । गुंबद गोल का कारण यह है कि हम जो मंत्रोच्चार करें, वे ही मंत्र पर लौटकर बरसें और हमारे वायुमंडल को, हमारे रोम-रोम को, हमारे चित्त और हृदय के परमाणुओं को निर्मल करें। साथ ही कोई भी मंत्र व्यर्थ न चला जाए। अपने जीवन में जिन महानुभावों को यह अपेक्षा हो कि औरों से माधुर्य पाएं, सौम्यता पाएं, तो उन्हें चाहिए कि वे औरों के साथ शालीनता से पेश आएं। कोई और व्यक्ति आपके साथ Jain Education International 52 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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