Book Title: Lakshya Banaye Safalta Paye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 35
________________ आवश्यकता है, केवल विश्वास और पुरुषार्थ को जगाने की। हावी मत होने दो किसी भी हीनता और दीनता को अपने मन पर। जागो, जागे सो महावीर। जो डर गया, वही कायर है। बचें लालसाओं के चंगुल से तीसरी बात, जिसके कारण आदमी के चित्त पर सदा बोझ बना रहता है, वह है आदमी के मन में पलने वाली व्यर्थ की लालसाएं, लालच की प्रवृत्तियां। जीवन में सम्यक कर्मों को संपादित करना, आजीविका के साधन जुटाना, सुख पूर्वक जीवन जीना मानव मात्र की आवश्यकता है। हर किसी व्यक्ति को श्रम करना चाहिए, विकास की ऊंचाइयों को छूना चाहिए, पर व्यर्थ की लालसाओं और तृष्णाओं में उलझकर जीवन को कोल्हू के बैल की एक ही दायरे में चलने वाली यात्रा नहीं बनना चाहिए। स्वार्थ और लोभ-लालच आदमी को मानवता से वंचित कर देते हैं। उसे सूझता है केवल और पाऊं, और पाऊं। लालसाएं तो मकड़जाल की तरह होती हैं, जिसमें मन की मकड़ी घिर जाती है। लोभ-लालच के चलते आदमी दिन-रात घर से दुकान और दुकान से घर के बीच अपनी जिंदगी पूरी कर देता है। मैंने बचपन में वह कहानी पढ़ी थी कि जिसमें एक गधा था, जो घर से घाट और घाट से घर के बीच अपनी जिंदगी पूरी कर देता है। मुझे यह प्रतीक बड़ा प्यारा लगा। प्यारा इसलिए लगा, क्योंकि जब इनसान को पढ़ा, तो लगा कि इनसान भी तो ऐसा ही जीवन जीता है। वह भी तो घर से दुकान और दुकान से घर के बीच अपनी जिंदगी को झोंक देता है। __ दो दिन पहले एक महानुभाव हमारे पास बैठे थे, शायद किसी संत ने उनको संकेत किया कि जब समय मिले, तो मंदिर-दर्शन का जरूर लाभ उठाएं, तो उन्होंने कहा, 'मैं तो दुकान चला जाता हूं।' उनसे पूछा, 'कितने बजे जाते हो?' 'सुबह छह बजे।' उन्होंने जवाब दिया। आदमी की लालसा या लालच तो देखो, आज इस कलियुग में लोग आठ-नौ बजे तक तो बिस्तरों में दुबके रहते हैं कुंभकरण की 34 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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