Book Title: Lakshya Banaye Safalta Paye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 26
________________ सध जाएं, तो बांस, बांस न रहेगा, बांसुरी बन जाएगा। संगीत का अनुपम संसार साकार हो जाएगा। तब बांस को, जीवन के बांस को जीने का मज़ा कुछ और होगा, अनेरा होगा, मधुरिम होगा। इनसान चाहे तो अपने जीवन को आनंद का उत्सव बना सकता है। उसे किसी मंदिर में जाकर किसी पंचकल्याणक महोत्सव को मनाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, वरन् उसका जीना और मुस्कराना भी पंचकल्याणक महोत्सव का पुण्य लिए हुए होगा। उसकी सौम्यता, शालीनता और आनंद ही उसका उत्सव होगा। उत्सवों के लिए उसे मेलों-महोत्सवों और पर्यों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। उसकी पलक खोलना और क़दम बढ़ाना भी किसी मेले का निमंत्रण होगा। स्वर्ग और नरक इसी जीवन के दो पर्याय हैं। स्वर्ग के गीत और नरक का आतंक, दोनों जीवन के ही अवदान हैं। स्वर्ग के गीतों को इसी जीवन से निनादित किया जा सकता है। मरने के बाद तो मुझे नहीं मालूम कि हमारे बाप-दादाओं को कितना स्वर्ग मिला होगा! स्वर्ग तो उन्हीं को मिलता है, जिन्होंने अपना जीवन स्वर्ग बनाया है। हम चाहे मरने के बाद किसी के नाम के नीचे स्वर्गीय लिख दें, मगर उसको नरक में जाने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि उसने अपना जीवन नरक बनाकर जीआ था। हमने अगर क्रोध के साथ अपना जीवन जीआ, तो मरने के बाद हमें चंडकौशिक बनने से कोई नहीं रोक सकता। नरक उनको मिलता है, जिनका जीवन आज नरक है। स्वर्ग उनको मिलता है, जिनका जीवन आज स्वर्ग है। स्वर्ग और नरक दोनों ही जीवन के पर्याय और परिणाम हैं। जो व्यक्ति हर हाल में मस्त है, वह नरक को भी स्वर्ग बनाने की कला जानता है। जिसने जीवन को स्वर्ग बनाना सीख लिया है, जीवन उसके लिए वरदान है, सौगात है। मैं जीवन का हर हाल में आनंद उठाता हूं, चाहे कोई हमें गाली दे या स्तुति करे। जीसस ने तो सलीब का भी आनंद उठाया, हम कम-से-कम किसी की गाली का तो आनंद उठा ही सकते हैं। मीरा ने तो विष-पान को भी अमृत-भाव प्रदान कर दिया। हम किसी की उपेक्षा और उपहास के विष का तो सामना कर ही सकते हैं! अगर जीने की यह कला आ जाए, तो सच, तुम्हारा हर कार्य मुक्ति का द्वार होगा। 25 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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