Book Title: Laghu Nayachakrama
Author(s): Devsen Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Pannalal Jain Granthamala

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Page 16
________________ विशेषार्थ - इस गाथा में ग्रन्थकार ने नय- उपनयों के भेदों का नामोल्लेख किया है। नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ एवंभूत, द्रव्यार्थिक, तथा पर्यायार्थिक इस प्रकार ये नव नय जानना चाहिए तथा उनका स्वरूप इस प्रकार से है। नैगम नय : अनिष्पन्न अर्थ में संकल्पमात्र को ग्रहण करने वाला नय नैगम है। यथा हाथ में फरसा लेकर जाते हुए किसी पुरुष को देखकर कोई अन्य पुरुष पूछता है - आप किस काम के लिये जा रहे हैं ? वह कहता है - प्रस्थ लेने के लिये जा रहा हूँ। यद्यपि उस समय वह प्रस्थ पर्याय सन्निहित नहीं है, तथापि प्रस्थ बनाने के संकल्प मात्र से उसमें प्रस्थ व्यवहार किया गया। यह सब नैगम नय का विषय है। संग्रह नय: जो नय अभेद रूप से वस्तु समूह को विषय करता है वह संग्रह नय है। भेद सहित सब पर्यायों को अपनी जाति के अविरोध द्वारा एक मानकर सामान्य से सब को ग्रहण करने वाला नय संग्रह नय है । यथा - सत् , द्रव्य और घट आदि। 'सत्' कहने पर सत् इस प्रकार के वचन और विज्ञान की अनुवृत्ति रूप लिंग से अनुमित सत्ता के आधारभूत सब पदार्थों का सामान्य रूप से संग्रह हो जाता है । द्रव्य' ऐसा कहने पर भी 'उन पर्यायों को द्रवता है, प्राप्त होता है' इस प्रकार इस व्युत्पत्ति से युक्त जीव, अजीव और उनके सब भेद-प्रभेदों का संग्रह हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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