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सूक्ष्म ऋजु सूत्र नय कहते है। जैसे सभी शब्द क्षणिक है और जो अपनी स्थितिपर्यन्त रहने वाली मनुष्य आदि पर्याय को उतने समय तक (पर्याय स्थिति) एक मनुष्य रुप से ग्रहण करता है वह स्थूल ऋजुसूत्र नय है।
विशेषार्थ - द्रव्य की भूत और भाविपर्यायों को छोड़कर जो वर्तमान पर्याय को ही ग्रहण करता है उस ज्ञान और वचन को ऋजुसूत्रनय कहते है । प्रत्येक वस्तु प्रति समय परिणमनशील है, इसलिए वास्तव में तो एक पर्याय एक समय तक ही रहती है। उस एक समयवर्ती पर्याय को अर्थ पर्याय कहते हैं। वह अर्थपर्याय सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय का विषय है । किन्तु व्यवहार में एक स्थूलपर्याय जब तक रहती है, तब तक लोग उसे वर्तमान पर्याय कहते हैं जैसे मनुष्य पर्याय आयु पर्यन्त रहती है। ऐसी स्थूल पर्याय को स्थूल ऋजुसूत्र नय ग्रहण करता है।
शब्दनयका स्वरूप जो वट्टणं च मण्णइ एयठे भिण्णलिङ्गमाईणं । सो सद्दणओ भणिओणेओ पुस्साइयाण जहा।।40।।
यो वर्तनं च मन्यते एकार्थे भिन्नलिंगादीनाम् ।
स शब्दनयो भणितः ज्ञेयः पुष्यादीनां यथा ।।40।। अहवा सिद्ध सद्दे कीरइ जं किंपि अत्थववहरणं । तं खलु सद्दे विसयं देवो सद्देण जह देवो ।।41||
अथवा सिद्धे शब्दे करोति यः किमपि अर्थव्यवहरणम्। स खलु शब्दस्य विषयः देवशब्देन यथा देवः ।।41।।
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