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विशेषार्थ – 'पुत्र आदि बन्धुवर्ग रूपमैं हूँ इसमें मैं तो आत्माकी पर्याय और पुत्र आदि पर पर्याय हैं। परपर्याय और स्वपर्याय में सम्बन्ध कल्पना के आधार पर उन्हें अपने रूप मानना या अपना कहना उपचरितोपचार रूप है तथा दोनों एकजातीय होने से उसे स्वजाति-उपचरित - असद्भूतव्यवहार नय कहते हैं।
विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार नय आहरणहेमरयणं वत्थादीया ममत्ति जंपतो । उवयारअसब्भूओ विजादिदव्वेसु णायव्वो ।।73||
आभरणहेमरत्नानि वस्त्रादीनि ममेति जल्पन् । उपचारासद्भूतो विजातिद्रव्येषु ज्ञातव्यः ।।73।।
अर्थ – आभरण, सोना, रत्न और वस्त्र आदि मेरे हैं, ऐसा कथन विजाति द्रव्यों में उपचरित असद्भूत व्यवहारनय है।
. विशेषार्थ - वस्त्र रत्न आदि विजातीय है, क्योंकि जड़ हैं। उनमें आत्मबुद्धि या ममत्वबुद्धि करना यह मेरे हैं' यह विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहारनय हैं।
स्वजाति विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार नय देसं च रज्ज दुग्गं एवं जो चेव भणइ मम सव्वं । उहयत्थे उपयरिओ होई असब्भूयववहारो ।।74||
देशश्च राज्यं दुर्ग एवं यश्चैव भणति मम सर्वम् ।
उभयार्थे उपचरितो भवत्यसद्भूतव्यवहारः ।।7411.
अर्थ - जो देश की तरह राज्य, दुर्ग, आदि अन्य मिश्र सजातिविजाति द्रव्यों को अपना कहता है उसका यह कथन सजाति-विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहारनय है।
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