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विशेषार्थ - ज्ञान गुण जीव का जीवोपजीवी गुण है । जब वह ज्ञेय घट, पट आदि को जानता है तो ज्ञेयोपजीवी नहीं होता। अर्थात् जैसे घट को जानते समय ज्ञान घट निरपेक्ष जीव का गुण है, वैसे ही घट आदि को नहीं जानते समय भी ज्ञान घट निरपेक्ष जीव का गुण है । आशय यह है कि अर्थ विकल्पात्मक ज्ञान को प्रमाण कहा जाता है । अर्थ 'स्व' और 'पर' के भेद से दो प्रकार का है और ज्ञान के तद्रूप होने का नाम विकल्प है। यह लक्षण निश्चय दृष्टि से ठीक नहीं है, क्योंकि सत्सामान्य निर्विकल्पक होता है । किन्तु अवलम्बन के बिना विषय रहित ज्ञान का कथन करना शक्य नहीं है। इसलिए घट, पट आदि ज्ञेयों का अवलम्बन लेकर ज्ञान का कथन किया जाता है। किन्तु वस्तुतः ज्ञान जीव का भावात्मक गुण है। उसका किसी भी काल में अभाव नहीं होता। अर्थात् ऐसा नहीं है कि घट, पट आदि बाह्य अर्थो के होने पर घट ज्ञान होता है और उनके अभाव में ज्ञान नहीं होता । जैसे उष्ण गुण के बिना अग्नि का अस्तित्व नहीं, वैसे ही ज्ञानगुण के बिना आत्मा का अस्तित्व नहीं। जो जानता है वही ज्ञान है, अतः आत्मा ज्ञानस्वरूप ही है।
उपचरित असद्भूत व्यवहार नय उवराया अवयारं सच्चासच्चेसु उहयअत्थेसु । सज्जाइइयरमिस्सो उवयरिओ कुणइ ववहारो।।7011 एपचारादुपचारं सत्यासत्येषु उभयार्थेषु । सजातीतरमिश्रेषु उपचरितः करोति व्यवहारः ।। 70।।
अर्थ - सत्य, असत्य और सत्यासत्य पदार्थो में तथा स्वजातीय, विजातीय और स्वजाति-विजातीय पदार्थो में जो एक उपचार के द्वारा दूसरे
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