Book Title: Laghu Nayachakrama
Author(s): Devsen Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Pannalal Jain Granthamala

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ उपचार का विधान किया जाता है उसे उपचरितासद्भूत व्यवहारनय कहते है। विशेषार्थ - पहले असद्भूत व्यवहारनय के नव भेद बतलाये हैं । यहाँ उनके अतिरिक्त तीन भेद बतलाते हैं। असदभूत का अर्थ ही उपचार है और उसमें भी जब उपचार किया जाता है तो उसे उपचरिता-सद्भूत व्यवहारनय कहते हैं। सत्यादि उपचरित असद्भूत व्यवहार नय के दृष्टांत देसवई देसत्थो अत्थवणिज्जो तहेव जंपतो । मे देसं मे दव्वं सच्चासच्चपि उभयत्थं 117 1|| देशपतिः देशस्थः अर्थपतिर्यः तथैव जल्पन् । मम देशो मम द्रव्यं सत्यासत्यमपि उभयार्थम्।।1।। अर्थ - देश का स्वामी कहता है कि यह देश मेरा है, या देश में स्थित व्यक्तिकहता है कि देश मेरा है या व्यापारी अर्थ का व्यापार करते हुए कहता है कि मेरा धन है तो यह क्रमशः सत्य, असत्य और सत्यासत्य उपचरित असद्भूत व्यवहार नय है। स्वजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार नय पुत्ताइबंधुवग्गं अहं च मम संपयाइ जंपंतो । उवयारासब्भूओ सजाइदव्वेसु णायव्वो 1172।। पुत्रादिबंधुर्गः अहं च मम सम्पदादि जल्पन् । उपचारासद्भूतः स्वजातिद्रव्येषु ज्ञातव्यः ।।72।। अर्थ - पुत्र आदि बन्धु वर्ग रूप मैं हूँ या यह सब सम्पदा मेरी है इस प्रकार का कथन स्वजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार नय है। | 51 | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66