Book Title: Laghu Nayachakrama
Author(s): Devsen Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Pannalal Jain Granthamala

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Page 22
________________ स्वजातीय पर्याय का आरोपण करनेवाला असद्भूत व्यवहार नय, स्वजातीय विजातीय द्रव्य में स्वजाति विजातिय गुण का आरोपण करनेवाला असद्भूत व्यवहार नय, स्वजातीय द्रव्य में स्वजातीय विभाव पर्याय का आरोपण करनेवाला असद्भूत व्यवहार नय, स्वजातीय गुण में स्वजातीय द्रव्य का आरोपण करनेवाला असद्भूत व्यवहार नय, स्वजातीय गुण में स्वजातीय पर्याय का अरोपण करनेवाला असद्भूत व्यवहार नय, स्वजातीय विभाव पर्याय में स्वजातीय द्रव्य का आरोपण करनेवाला असद्भूत व्यवहार नय, स्वजातीय पर्याय में स्वजातीय गुण का आरोपण करनेवाला असद्भूत व्यवहार नय तथा उपचरित असद्भूत व्यवहार नय तीन प्रकार का है । स्वजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहार नय , विजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहार नय, स्वजातीय विजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहार नय। इन सभी के स्वरूपों का स्पष्टीकरण आगे की गाथाओं में किया गया है। द्रव्यार्थिक एवंपयार्यार्थिक नयों का स्वरूप पज्जय गउणं किच्चा दवं पिय जोहु गिह्णए लोए। सो दव्वत्थो भणिओ विवरीओ पज्जयत्थो दु ।।17।। पर्यायंगौण कृत्वा द्रव्यमपिच यो हिगृह्णातिलोके। स द्रव्यार्थो भणितः विपरीतः पर्यायार्थस्तु।।17।। अर्थ - जो पर्याय को गौण करके द्रव्य को ग्रहण करता है उसे द्रव्यार्थिकनय कहते हैं और जो द्रव्य को गौण करके पर्याय को ग्रहण करता है उस पर्यायार्थिक नय कहते हैं। विशेषार्थ - प्रत्येक वस्तु नित्य अनित्य आदि अनेक विरोधी अंगो | 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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