Book Title: Laghu Nayachakrama
Author(s): Devsen Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Pannalal Jain Granthamala

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Page 32
________________ पर्याय है और दूसरे भेद का विषय सादि-नित्य पर्याय है। सिद्ध पर्याय ज्ञानावरणादि आठों कर्मो के क्षय से उत्पन्न होती है अतः सादि है किन्तु इस पर्याय का कभी नाश नहीं होगा इसलिये नित्य है । इसी प्रकार ज्ञानावरण कर्म के क्षय से उत्पन्न होने वाला क्षायिक ज्ञान, दर्शनावरण कर्म के क्षय से उत्पन्न होने वाला क्षायिक दर्शन, मोहनीय कर्म के क्षय से उत्पन्न होने वाले क्षायिक सम्यग्दर्शन, क्षायिक चारित्र तथा अनन्त सुख, अन्तराय कर्म के क्षय से उत्पन्न होने वाले क्षायिक दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य ये सब क्षायिक भाव भी सादि-नित्य पर्याय हैं तथा इन पर्यायों को ग्रहण करने वाला नय सादि नित्य पर्यायार्थिक नय है। अनित्यशुद्ध पर्यायार्थिक नय सत्ता अमुक्खरूवे उप्पादवयं हि गिणए जो हु। सोदुसहाव अणिच्चो भण्णइ खलु सुद्धपज्जायो।।29|| सत्ताऽमुख्यरूपे उत्पादव्ययौ हि गृह्णाति यो हि। सतु स्वभावानित्यो भण्यते खलु शुद्धपर्यायः ।।29।। अर्थ - जो सत्ता को गौण करके उत्पाद व्यय को ग्रहण करता है उसे अनित्य स्वभाव को ग्रहण करने वाला शुद्ध पर्यायार्थिक नय कहते है। विशेषार्थ - सत् का लक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य हैं । प्रत्येक वस्तु प्रतिसमय उत्पन्न होती है, नष्ट होती है और ध्रुव भी रहती है। इनमें से जो नय ध्रौव्यको गौण करके प्रति समय होने वाले उत्पाद-व्ययरूप पर्यायको ही ग्रहण करता है वह अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय है। | 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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