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गुणगुण्यादिचतुष्केर्थे यो न करोति खलु भेदम् ।
शुद्धः स द्रव्यार्थो भेदविकल्पेन निरपेक्षः ।।20।।
अर्थ - गुण - गुणी आदि चतुष्करूप अर्थ में जो नय भेद नहीं करता ___ है, वह भेद विकल्प निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
विशेषार्थ - जो गुण पर्याय वाला है वह द्रव्य है । ऐसा द्रव्य का लक्षण किया गया है, इस लक्षण से गुण और पर्यायें दो कोई स्वतत्र पदार्थ है और द्रव्य नाम का तीसरा कोई स्वतंत्र पदार्थ है, ऐसा प्रतिभासित होता है किन्तु ये तीनों कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं है अपितु एक ही है। इनमें कोई प्रदेश भेद नहीं पाया जाता है। गुण-पर्याय से, पर्याय गुण से, द्रव्य-गुण -पर्याय से अभेद है, अभिन्न हैं । यह नय - भेद विवक्षा को गौण करके,शुद्ध द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा गुण -पर्याय स्वभाव का द्रव्य से अभेद है , इस प्रकार ग्रहण करता है।
___ कर्मोपधि सापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिक नय भावेसु राययादी सव्वे जीवंमि जो दु जंपेदि । सोहु असुद्धो उत्तो कम्माणोवाहिसावेक्खो ||21||
भावान् च रागादीन् सर्वेषु जीवेषु यस्तु जल्पति ।
स खलु अशुद्ध उक्तः कर्मणामुपाधिसापेक्षः ।।21।। अर्थ - जो सब रागादिभावों को जीव का कहता है या रागादिभावों को जीव कहता है वह कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
विशेषार्थ - राग, द्वेष आदि भाव जीव में ही होते है किन्तु कर्मजन्य है, क्योंकि शुद्ध जीवों में इन भावों का सर्वथा अभाव है। इन भावों को जीव
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