Book Title: Laghu Nayachakrama
Author(s): Devsen Acharya, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Pannalal Jain Granthamala

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Page 25
________________ उत्पादव्ययं गौणं कृत्वा योगृह्णाति केवलां सत्ताम्। भण्यते स शुद्धनयः इह सत्ताग्राहकः समये।।19।। अर्थ - उत्पाद और व्यय को गौण करके जो केवल सत्ता को ग्रहण करता है उसे आगम में सत्ता ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहते हैं। विशेषार्थ - सत् द्रव्य का लक्षण उत्पाद, व्यय, और ध्रौव्यात्मक है। उसमें से उत्पाद व्यय को गौण कर, सत्ता या ध्रुवत्व मात्र को जो नय ग्रहण करता है- उसे उत्पाद व्यय निरपेक्ष सत्ताग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहते है। यथा स्वर्ण कड़ा, कुण्डल आदि पर्याय रूप परिमणने पर भी स्वर्ण पने से किसी भी पर्याय में च्युत नहीं होता है। यह नय उत्पाद व्यय को मुख्य रूप से ग्रहण नहीं करता इसलिये ये उत्पाद व्यय निरपेक्ष है। केवल सत्ता की नित्यता को ग्रहण करने के कारण सत्ता ग्राहक है। निर्विकल्प ग्रहण होने से शुद्ध है। और सामान्य द्रव्य को विषय करने के कारण द्रव्यार्थिक है अतः उत्पाद - व्यय निरपेक्ष सत्ता ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्यिक नय कहता है । उत्पत्ति व विनाश वस्तु में होते हुए वस्तु का सामान्य स्वभाव कभी भी उत्पत्ति विनाश रूप नहीं होता है । वह त्रिकाली ध्रुव है। इस प्रकार परिवर्तनशील वस्तु में भी उसकी नित्य सत्ता को ग्रहण करना, इस नय का मुख्य प्रयोजन है। भेद कल्पना निरपेक्षशुद्ध द्रव्यार्थिकनय गुणगुणियाइचउक्के अत्थे जो णो करेइ खलु भेयं । सुद्धो सो दव्वत्थो भेदवियप्पेण णिरवेक्खो ||20II | 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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