Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ corporon भूमिका न् श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक संप्रदाय में भगवान महावीर द्वारा प्रतिष्ठित श्रमण संघ आज तपागच्छ के नाम से पहचाना जाता है... भगवान महावीर की श्रमण परंपरा के कुछ नामांतर इस प्रकार है... निग्रंथ गच्छ - सुधर्मा स्वामीजी से। कोटिक गच्छ - आ. आर्यसुहस्ति सू. के शिष्यो ने कोटी बार उदयगिरि पर जाप किया उससे / चांद्र गच्छ - आ. चंद्रसूरिजी से। वनवासी गच्छ - आ. समंतभद्र सूरिजी से। वड गच्छ - आ. उद्योतन सूरिजी द्वारा आबु के पास टेली गांव में तपा गच्छ प्रस्तुत तपागच्छ वो गच्छ है जो मूलपरंपरा का अंश है / यह गच्छ कोई शास्त्र विरुद्ध नूतन प्रणालिका को लेकर अलग नहीं हुआ ना ही कोइ नया मत गच्छ के रुप में स्थापिष्ट किया गया है / यह परमात्मा महावीर की वो गौरवशाली परंपरा है जो "सवि जीव करु शासन रसी' के पद द्वारा जीवराशी मात्र के लिए परोपकार का कार्य कर रही है। प्रस्तुत भगवान की श्रमण परंपरा ने समय-समय पर अनेक शासन प्रभावना एवं शासन रक्षा के कार्य किये है। कहते है आराधना से प्रभावना का विशेष महत्व है और प्रभावना से रक्षा का.. जब जब भी भगवान के शासन पर आक्रमण हुए तब-तब भगवान की मूल श्रमण परंपरा ने (तपागच्छ ने) अपने प्राणों की आहुती देकर शासन को सम्हाला है। इसी क्रम में जब मुगलशासन की बात हो तब तपागच्छ सूर्य, अकबर प्रतिबोधक आ. हीरविजयसूरिजी महाराजा, आ. सेनसूरिजी. म. आदि ने अकबर जैसे क्रूर बादशाह पर प्रभाव डालकर शत्रुजयादि अनेक तीर्थो की रक्षा की... अनेक फरमान बादशाहो से ले आए। वैसे ही तपागच्छ के शांतिदास

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 78