Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad

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Page 67
________________ 00000000000000000000 000000000000000000000 8 एक ऐतिहासिक उल्लेख अवंति पार्श्वनाथ परमात्मा के संदर्भ में एक ऐतिहासिक स्तवन, जो मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म. को शोध से प्राप्त हुआ है। इस 06 स्तवन में अवंतिसुकुमाल की कथा का वर्णन करते हुए उनके सुपुत्र महाकाल द्वारा प्रतिमा निर्माण व प्रतिष्ठा, प्रतिमा की शिवलिंग के रूप में पूजा, 89 आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरि द्वारा कल्याण मंदिर स्तोत्र की रचना से प्रतिमा के प्राकट्य का वर्णन इस स्तवन की गाथाओं में पढ़ने को प्राप्त होता है। इस स्तवन के द्वारा एक नये तथ्य की जानकारी मिलती है कि जब यवनों का आक्रमण बहुत ज्यादा बढ़ गया था और यवन सेना बड़ा संख्या में मालव प्रदेश में आ रही थी। उस सेना का उद्देश्य था-मंदिरों को नष्ट करना...प्रतिमाओं को खंडित करना! ऐसी स्थिति में उस समय उज्जैन के संघ ने गंभीर विचार कर परमात्मा अवंति पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा को भंडार कर दिया था। भंडार करने का अर्थ है- भोयरे में रखकर उस कक्ष को पूर्ण रूप से बंद कर देना। खरतरगच्छ नायक आचार्य श्री जिनरत्नसूरिकेपट्टधर आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि ने इस स्तवन में लिखा है कि वि.सं.1761 में अवंति पार्श्वनाथ परमात्मा की प्रतिमा को पूनः प्रकट किया गया अर्थात् भडार खोलकर बाहर लाया गया व मंदिर में बिराजमान किया गया। परमात्मा का प्राकट्य महोत्सव व पूनः प्रतिष्ठा खरतरगच्छ के आचार्य जिनरत्नसूरि के शिष्य आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि की पावन निश्रा में उनके मंत्रोच्चारणों से किया गया था। इस प्राकट्य महोत्सव के समय ही इस स्तवन की रचना हुई होगी। गरूओ जस अधिकार सुंणी जिनगेह रो, सिवमतीये पिंडी थाप कीयौ सिवदेहरो।।5।। कल्याणमंदिर काव्य कुमदचंदै कीयौ, पिंडी विकसी पास जिणेसर प्रगटीयो। वारै विक्रम राय वड़ी सोभा वणी, घणौं काल जिनधर्म प्रसिद्धि हुई घणी / / 6 / / यवन जोर तिहां बिंब भंडार्या जतन सुं, रागी कुंण कुंण राग करै नही रतनसुं। हिव सतरैसै संवत वरसैं इगस, प्रगट थया प्रभु पासजी वंद्या सारी पठे।।7।। उदय सकल सुख लखमी धन जीवित थयौ, भेट्या श्री भगवंत दुख दुरै गयौ। लाख भांति श्री खरतरगच्छ सोभा कही, गणधर जिणचंदसूरि जुहार्या गहगही / / 8 / / इति / / उपरोक्त ऐतिहासिक स्तवन आचार्य कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा की प्रति संख्या 68004 पृष्ठ सं.19 से साभार प्राप्त हुआ है। अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ विषयक पत्रीका में गलत वर्णन परिशिष्ट 8 000000000000000000

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