Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad
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________________ श्री अवन्ति पार्श्वनाथ पुनः प्रतिष्ठा विषयक भ्रम का खंडन हाल ही में, जिनमणिप्रभसूरिजी ने अपने प्रवचन (विडियो क्लिप) में बताया है कि "श्री अवंति पार्श्वनाथ प्रभु की पुनः प्रतिष्ठा खरतरगच्छीय आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी के हाथों से हुई थी।" तथा श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ की प्रतिष्ठा की आमंत्रण पत्रिका में "उदभव.... प्रभु अवंति पार्श्व का" के पेज नं.२ में एक ऐतिहासिक उल्लेख के रूप में एक स्तवन दिया गया है। एवं लिखा है कि "इस स्तवन के द्वारा एक नये तथ्य की जानकारी मिलती है कि जब यवनों का आक्रमण बहुत ज्यादा बढ़ गया था और यवन सेना बडी संख्या में मालब प्रदेश में आ रही थी। उस सेना का उद्देश्य था-मंदिरो को नष्ट करना... प्रतिमाओं को खंडित करना। ऐसी स्थिति में उस समय उज्जैन के संघ ने गंभीर विचार कर परमात्मा अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा को भंडार कर दिया था / भंडार करने का अर्थ है - भोयरे में रखकर उस कक्ष को पूर्ण रूप से बंद कर देना / खरतरगच्छ नायक आचार्य श्री जिनरधसूरि के पट्टनर आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि ने इस स्तवन में, लिखा है कि वि.सं.१७६१ मं अवन्ति पार्श्वनाथ परमात्मा की प्रतिमा को पुनः प्रगट किया गया / अर्थात् भंडार खोलकर बाहर लाया गया ब मंदिर में बिराजमान किया गया / परमात्मा का प्राकट्य महोत्सव व पुनः प्रतिष्ठा खरतरगच्छ के आचार्य जिनरत्नसूरि के शिष्य आचार्य श्री जिनचंद्रसूरि की पावन निश्रा में उनके मंत्रोच्चारणो से किया गया था / इस प्राकट्य महोत्सव के समय ही इस स्तवन की रचना हुई होगी।" इस प्रकार लिखने के बाद प्रमाण के रुप में उस स्तवन की ५वीं से ८वीं तक की कडीयां दी है / तथा यह भी बताया है कि इस स्तवन की शोध मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी ने की है। एवं कोबा से इसकी हस्तप्रत प्राप्त हुई हैं। एक ऐतिहासिक उल्लेख के रूप में जिस स्तवन को शोध करके पेश किया गया है, उसको ध्यान से पढने पर स्पष्ट पता चल जाता है कि