Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad

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Page 25
________________ * प्राचीन इतिहास के रुप में, श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी महाराजा द्वारा श्री अवंति पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिष्ठा की गई थी। * 17 वी शताब्दी में तपागच्छीय श्री उत्तमविमलगणि के उपदेश द्वारा श्री अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिष्ठा की गई थी। * क्षिप्रातट पर स्थित इस ऐतिहासिक अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर में अभी अभी कुछ अनधिकृत चेष्टाए की गई तथा इस प्राचीन तीर्थ को स्वगच्छ का स्वतंत्र बनाने हेतु की हुई चेष्टाओं को लोगों ने अपनी नजरों से देखा है। जैसे कि - * इस प्राचीन जिनमंदिर में नवीन प्रतिमा नही बिठाई जावेगी यह कलम तोडते हुए अनेक नवीन प्रतिमाओं को अपने नाम के शिलालेख सहित मंदिर में स्थापित करवाने का प्लानिंग / * अपने दादागुरुओं की प्रतिमा स्थापित करवाकर नया इतिहास सर्जन करने का जो सपना संजोया था कि हमारे दादागुरुओं द्वारा इस तीर्थ का विकास एवं उद्धार हुआ है यह लोगों के आंखो में धुल डालने सा था। * प्राचीन, वर्षो से बिराजित तपागच्छीय यक्षराज श्री मणीभद्रवीर देव की प्रतिमा के साथ क्या हुआ और कैसे हुआ / यह सब बाते तो शासनप्रभावक तीर्थ उद्धारक? सूरिभगवंत जानते ही होंगे? * हद की सीमा तो तब हो गई कि जब प्राचीन पूर्वाचार्यो द्वारा स्थापित प्रतिमाओं को भी प्रस्ताव की कलम तोडकर उत्थापित किया गया / और अब तपागच्छीय आचार्य भगवंतो से प्रत्युत्तर मांगा जा रहा है कि हमारे तीर्थो को आप अतिक्रमण कर रहे हो... वास्तव में तो अतिक्रमण कौन कर रहा है यह पूरी दुनिया देख ही रही है / तपागच्छीय गुरुभगवंतो की यह उदारता है कि अभी तक शांत बैठे है। सत्य को छिपाया जा सकता है मिटाया नहि जा सकता। GOOD PRODOOOOOOOOOOOOO 00000000000000000000 DOOOOOOOOOOOO Coooooooo

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