Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad
View full book text
________________ ऐसे में श्री जिनशासन व तपागच्छ दोनों के ही हितों को ध्यान में रखते हुए आपके 31 मार्च 2016 वाले पत्र का प्रतिभाव देना अब अवसर प्राप्त बन गया है। आपने लिखा था कि "हमारे पास इस सम्मेलन में चर्चा करने के लिए जो 50 मुद्दे तय किये, उसकी प्रतिलिपि आई है"। सर्व प्रथम हम आपसे यह स्पष्टता चाहेंगे कि यह प्रतिलिपि आपके पास कहां से आई थी, उसका अधिकृत स्त्रोत क्या था ? यह तय है कि प्रवरसमिति ने तो ऐसी कोई प्रतिलिपि आपको नहीं भेजी थी।" आप के पत्र की भाषा से यह प्रतीत होता है कि जैसे "यह प्रतिलिपि तपागच्छीय प्रवर समिति ने आपके साथ-साथ संपूर्ण भारत के खरतरगच्छ संघ एवं युवा समाज को भी भेजी है और इसके चलते आपको हमें पत्र लिखने हेतु बाध्य होना पडा है।" जबकि सच्चाई यह है कि इसकी प्रतिलिपि मात्र तपागच्छ के सभी 2 समुदायों के प्रमुख आचार्यों को ही भेजी गई थी। यहा तक कि तपागच्छ के - संघों तक को भी यह प्रतिलिपि नहीं भेजी गई थी। अतः अन्य गच्छ वालों को यह प्रतिलिपि हमारी ओर से भेजने का सवाल ही नहीं उठता / ऐसे में आपका संपूर्ण भारत के खरतरगच्छ संघ एवं युवा समाज का मन "अतीव / पीडा व आक्रोश से भर उठा है" वह आप के द्वारा एक सर्वथा गलत तरीके से प्राप्त अनधिकृत दस्तावेज के कारण से हुआ है / अतः इस पीडा के जिम्मेदार हम नहीं किंतु एक मात्र रूप से आप खुद हो, इस सच्चाई का आप स्वीकार करें। आप में तपागच्छ के प्रति आत्यंतिक तेजोद्वेष का अंधत्व इस कदर आया हुआ है कि आपका पत्र सोशियल मिडीया पर रखते हुए एवं समाचार पत्रों को देते हुए आपको यह भी ध्यान नहीं रहा कि आपके द्वारा बिना विचारे यथावत उद्धृत 28 नंबर के मुद्दे में तपागच्छ, खरतरगच्छ आदि समस्त मूर्तिपूजक संघ के लिए तरह-तरह से नुकसानकर्ता ऐसे स्थानकवासी, तेरापंथी S एवं खास तो सम्मेतशिखर आदि तीर्थों में महापरेशानी का कारण बने हुए दिगंबरो का भी स्पष्ट रुप से नाम है। क्या सम्मेतशिखर, अंतरिक्षजी, मक्षीजी आदि अनेक तीर्थों से आपका एवं आपके आज्ञानुवर्ती खरतरगच्छ का कोई नाता रिश्ता नहीं है ?