Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad
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________________ 14. इसी तरह की दूषित मानसिकता के चलते आपके एवं आपके गच्छ द्वारा ऐसी अन्य भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिनशासन के लिए जो भी अहितकर प्रवृत्तियों की जा रही है वे भी तात्कालिक रूप से अटकावें। एक वरिष्ठ तपागच्छीय आचार्य के हाथों एवं अनेक तपागच्छीय आचार्यों आदि की सौहार्दपूर्ण उपस्थिति में हुई आपकी आचार्य पदवी के तुरंत ही कुछ दिनों बाद आप की ओर से तपागच्छ पर इस तरह सरे आम बेतुके व जघन्य इल्जाम लगा कर आपने किस शालीन व गौरवशाली परंपरा का निर्वाह किया है ? एक शांत, सद्भावपूर्ण व सौम्य माहौल को इस तरह दूषित करने के क्या अंजाम आ सकते है उस पर आप परिपक्व मति को आहूत कर विचार कर लें। __आप को सद्भावना भरे हृदय से हमारा निवेदन है। कि "आप अपने गच्छ के एक धडे के एक अंश की ही सीमित सोच से बाहर आएँ ।"आप जरा समग्र श्रीसंघ एवं जिनशासन के हितों की भी सोचें, उन पर भी ध्यान दें / वर्तमान में अंदर-बाहर जो परिस्थितियाँ आकार ले रही है और जिन भयावह परिस्थितियों ने जिनशासन को घेरकर रखा है, उनके चलते समग्र जैन समाज व श्रीसंघ का अस्तित्व ही निरंतर खतरे की ओर बढ़ रहा है। जब समग्र जैन श्रीसंघ की ही बडे पैमाने पर दुर्दशा खडी होने के स्पष्ट आसार है, तब खरतरगच्छ कोई जिनशासन से बढकर नहीं है कि उसका अस्तित्व बच जाएगा / जब दादावाडीयों आदि को पूजने, सम्हालने वाले किसी भी गच्छसम्प्रदाय के जैन ही मिलने दुर्लभ हो जाएगे उस वक्त आपकी प्रियतम दादावाडियों आदि के क्या हाल होंगे वह भी सोचें / यह कोई मुद्दे को अन्यत्र ले जाने का प्रयास नहीं है, बल्कि एक खुब ही जिम्मेदार गच्छ की ओर से आपको भी आपकी जिम्मेदारी का अहसास करवाने का प्रयास मात्र है। आशा है कि अब आगे से आप सकारात्मक व परिपक्व प्रतिभाव देने की शालीन परंपरा को अपनाएंगे, ताकि सार्थक सुसंवाद हो सकें। 000000000DPOORope 6666666666666666660 DOOOOOOOOOOOOOK 600000000000000