Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad

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Page 43
________________ 000000000000000000000 अगर हमारे पास आपके तीर्थ हैं तो अपने तीर्थ ले सकते हैं, मगर, हमारे तीर्थ भी हमें दीजिए: जिनमणिप्रभ सागर सूरि पालीताणा तपागच्छ साधु सम्मेलन में दिवाम्बर, स्थानकवासी, रखरतरगच्छ, तेरापंथ समुदाय पर लगाए तीर्थों पर कब्जे का झूठा आरोप, स्थानकवासी एवं तेरापंथ समुदाय में तीर्थ या मंदिर होते ही नहीं तो फिर कब्जा कैसा? इधर, मंदिरमार्गी समुदाय के रखरतरगच्छाचार्य जिनमणिप्रभ सागर मूरि जी ने दिया करारा जवाब, कहा, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, तपागच्छ आचार्यों की बोलती बंद, मणिप्रभ सागर जी के नाम से फर्जी पत्र के नाम पर पालीताणा में तपागच्छीय आचार्यों एवं साधुओं को होना पड़ा झूठा साबित, प्रस्तुत नहीं कर पाए आचार्य मणिप्रभ सागर जी के रिवलाफ एक भी सबूत पालीताणा। मर्तिपूजक श्वेताम्बर तपागच्छ समुदाय के साधु सम्मेलन का कय आगाज हुआ, कब समापन पता ही पालीताणा। खरतरगच्छ के श्री मणिप्रभ सागर जी के नाम से जारी एक फर्जी कविता नहीं चला। महासम्मेलन का आयोजन पालीताणा में हुआ जिसमें मुख्य गच्छाधिपतियों,आचार्यों अथवा उनके द्वारा पत्र प्रकरण की भी सम्मेलन में गूंज सुनाई दी लेकिन तपागच्छ समुदाय के कोई भी अधिकत संतों को ही प्रवेश दिया गया। साधु सम्मेलन में साध्वियों की कहीं कोई जरूरत नहीं समझी गई। उन्हें केवल आचार्य या संत इसे प्रमाणित नहीं कर पाए। हालांकि खरतरगच्छ के गणिवर्य श्री साधओं को वंदन करने के लिए ही सम्मेलन स्थल पर आने की इजाजत थी। इस महासम्मेलन में जिनशासन के मणिरत्न सागर जी के प्रयासों से मणिप्रभ सागर जी म.सा. ने इस पर का खंडन कर चर्विध संघ के एक पक्ष यानी साध्वी भगवतों को सम्मेलन में चर्चा का कोई अधिकार नहीं था। बड़े-बड़े संत जो तपागच्छ संता कोद दिया। दूसरी और सम्मेलन में दिगम्बर, तेरापंथी, स्थानकवासी.। मां के जीवन पर बडे-बड़े प्रवचन देते हैं, उसके सम्मान की बात करते हैं, आज वही मां इन संतों को सलाम करने खरतरगच्छ आदि समुदायों पर तपागच्छ समुदाय के तीर्थ हड़पने का आरोप लगाया तक सीमित रही। मां का सम्मान केवल बेटों को वंदन करने यानी सलाम ठोकने तक ही सीमित था। गरु भगवंत जब जिसका खरतरगच्छाचार्य ने जवाब दे दिया है। मणिप्रभ सागर सरि जी म.सा. ने सम्मेलन स्थल पर आते तो साध्वियां एक कतार में खड़े होकर साधुओं को अक्षत और गीतों से बधार्ती साध आते तपागच्छाचार्यों को दो टक शब्दों में कहा कि यह आरोप बिल्कुल ऐसा है जैसे उल्टा और साध्वियों की वंदना का जवाब दिए बिना ही आगे बढ़ते जाते / क्या यही है तपागच्छ समदाय में साध्वियों की चोर कोतवाल को डाटे / मणिप्रभसागर जी ने स्पष्ट किया कि अगर तपागच्छ समाज औकात? हालांकि एकाध बार सम्मेलन में साध-साध्वियां. श्रावक-श्राविकाएं भी उपस्थित हए लेकिन यह घटनाक्रम इस बात का प्रमाण दे कि उनके तीर्थ खरतरगच्छ के कब्जे में हैं तो तो हम अभी वे 1 अप्रैल, 2016 का है। इस दिन आदिनाथ भगवान का जन्म-दीक्षा कल्याणक होने के कारण अनेक साधु भगवंत तीर्थ आपको सौंपने के लिए तैयार हैं लेकिन इससे पहले आपको (तपागच्छ हार आदिनाथ भगवान के दर्शन करने गए। इस कारण इस दिन सम्मेलन विलम्ब से प्रारम्भ हआ। लेकिन समुदाय) को भी खरतरगच्छ के ताथ हम सापन होग जिन पर आपक समुदाय का सभा साथ भगवंतों के स्वागत एवं बधाइयां देने के लिए साध्वियों को कतार में ही सडा होना पडा। जिस मां ने जन्म कब्जा है। यह पत्र मणिप्रभ सागर जी ने तपागच्छाचार्यों को प्रेषित कर खरतरगच्छ दिया, वही मा अपने बेटे को वंदन कर रही थी. बधाइयां दे रही थी. लेकिन इस मां को सम्मेलन स्थल में अपने की ओर से अपना जवाब दे दिया है। दिगम्बर, स्थानकवासी एवं तेरापथ वाला का। विचार व्यक्त करने का अधिकार नहीं था। जानकारी में तो यह भी आया है कि कह संतों को सम्मेलन स्थल में प्रवेश पता नहीं। वैसे भी स्थानकवासी एवं तेरापंथ समुदाय के काइ ताय या मादरावत नहादिया करन दिया गया तो मारपीट की स्थिति बन गई तब उपस्थित लोगों ने बीच बचाव कर मामला शांत किया। नहीं तो फिर कब्जा करने की बात कहां से आई. यह पूर्णतः आववकपूर्णआराप। 00000 1000000

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