Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad
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________________ यह पूछ रहे है तो कुछ खास वजह से ही पूछ रहे है। परस्पर सौहार्द एवं उदारता के कुछ नमुने... 1. खरतरगच्छ के आचार्य श्री जिनप्रभसूरिजी द्वारा तपागच्छ के आचार्य श्री सोमतिलकसूरिजी का सामने से संपर्क कर के तपागच्छ यह जिनशासन की मुख्यधारा का ही गच्छ होने की प्रतीति कर लेने के बाद अपने ग्रंथों को भावी सम्हाल हेतु उन्हें (यानि तपागच्छ को) सुपर्द करने की प्राचीन घटना में समूचे खरतरगच्छ के लिए कई बोध संकेत निहित है / कदाग्रह-मुक्त चित ही इन संकेतो को अच्छी तरह समझ पाएगा। 2. खरतरगच्छ के मूर्धन्य विद्वान श्री जिनहर्षने अपना अंतिम समय तपागच्छ के साधुओं के साथ बिताया था / तपागच्छ में आज भी उनके स्तवनादि बडे भाव से बोले जाते है। 3. खरतरगच्छ के श्रीमद् देवचन्द्रजी के विरल कृतित्व और व्यक्तित्व को दो बडे भागों में सर्व प्रथम श्रीसंघ के समक्ष लाने वाले तपागच्छ के आचार्य योगनिष्ठ बुद्धिसागरसूरीश्वरजी थे। 4. खरतरगच्छ के अध्यात्म अवधूत श्री ज्ञानसारजी ने तपागच्छ के महा- महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी के ज्ञानसारग्रंथ के रहस्यों को उजागर करती टीका रची है / उनका अपना नाम ही ज्ञानसारजी होना क्या कम सांकेतिक है? 5. खरतरगच्छ के श्रीमद् देवचंद्रजी की चौबीसी पर विवेचना लिखी है तपागच्छ के अध्यात्मनिष्ठ आचार्य देव श्री कलापूर्णसूरीश्वरजी ने और बेनमून विराट कलाकृति सा सजा कर छपवाया है तपागच्छ के श्री प्रेमलभाई कापडीयाने / 6. वर्तमान में इसी चौबीसी पर तपागच्छ के "यशोविजयसूरि" इस - समान नामधारी दो दो तपागच्छीय आचार्यों ने अपनी संवेदनात्मक विवेचना लिखी है एवं प्रवचनों तथा वाचनाओं में सभाओं को भावित की है। 7. खरतरगच्छ के एक साध्वीजी ने तपागच्छ के उपा. श्री विनयविजयजी विरचित शांतसुधारस पर पी.एच.डी. निबंध लिख कर दो भागों में छपवाया है। 8. अनेक प्राचीन खरतरगच्छीय विद्वानों की कृतियों का संपादन