Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad
View full book text
________________ हाँ, अमुक तीर्थ तपागच्छ के आधीन है तो यह भी स्पष्ट है कि वे आपकी तरह षडयंत्रो के माध्यम से तपागच्छ के आधीन हरगिज नहीं आए है बल्कि उसके पीछे का परम सत्य यह है कि... (1) तपागच्छ ने इन तीर्थों को जिनशासन की धरोहर समझ कर नाश होने से बचाया है। वजह थी कि खरतरगच्छ की ओर से उस क्षेत्र में उस तीर्थ को सम्हाल सकें ऐसे कोई नहीं बचे थे / जैसा कि खरतरगच्छ वाले अनेक स्थलों पर कर रहे है वैसी मलीन रीत रसमों को आजमा कर तपागच्छ ने तीर्थों की कब्जेदारी हरगीज नही की है। तपागच्छ ने आपदा के समय उन तीर्थों को सम्हाला, लाखो नहीं परंतु करोडों-करोडों रुपए खर्च कर के उन तीर्थों का जीर्णोद्धार, विस्तार, विकास आदि किया है। उन तीर्थों को बहोत ही अच्छी तरह से सुरक्षित रखा है और उनकी जाहोजलाली करवाई है / खरतरगच्छ सहित सारा मूर्तिपूजक श्रीसंघ बडे उल्लास से उन तीर्थो की आराधना कर रहा है। (2) या तो उन तीर्थों के निर्माण या संचालन में प्रारंभ से ही तपागच्छ वालों का साथ-सहकार व भागीदारी रही है एवं बडे ही सद्भाव व सहयोग पूर्वक दोनों ही गच्छ वालों ने साथ रह कर तीर्थों का निर्वाह किया है। ऐसे तीर्थों के निर्माण के बाद एवं निर्वाह व आय वृद्धि में बहुधा तपागच्छ का ही स्वाभाविक रूप से कुल मिलाकर सब से ज्यादा योगदान रहा है। फिर क्रमशः अन्य कोई विकल्प न होने से क्वचित् सारा संचालन तपागच्छ का हो गया हो ऐसा हो सकता है। __ तपागच्छ भी अपनी उदार गरिमामय परंपरा का निर्वाह करता हुआ जिनशासन की इन धरोहरों को भी सम्हाल रहा है / इसका तपागच्छ को परम संतोष है। क्या यह सच्चाई आपके ध्यान में नहीं है कि जहाँ तपागच्छ वाले नहीं थे वहा खरतरगच्छ की क्या हालत हुई है ? क्या वे क्षेत्र स्थानकवासी व तेरापंथी नहीं बने ? वहां के धर्म स्थानों की क्या हालात है ? वे धर्मस्थान उनके कब्जे में है और उपेक्षित हालत में है / जर्जरित-खंडहर हो रहे है या कोई अन्य ही अपयोग हो रहा है / उनकी पूजा करने वाला या ध्यान तक रखने वाला कोई नहीं है। फिर भी जो ध्यान रख रहे है वे दूर-दराज से जा कर भी तपागच्छ वाले ही बहुधा रख रहे है।