Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad
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________________ फिर भी हमने समता बनाये रखी थी, परंतु अभी वर्तमान में उज्जैन में श्री . अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में आपने स्वयं नियमों को तोडते हुए गुरुमूर्तियाँ, नयी प्रतिमाएं वगैरह लाई थी, जिन्हें वहा के जिल्लाधीश ने सील करवा दी थी। आपने नयी प्रतिमाएं नहीं बैठायी जाएगी, प्राचीन प्रतिमाओं का उत्थापन नहीं करेंगे एवं दूसरी मंजिल पर श्री महावीर स्वामी और गौतमस्वामीजी की प्रतिमा स्थापित करेंगे, इन सब नियमों को तोडा हैं तथा अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में प्राचीन कोई भी शिलालेख, प्रतिमा लेख, ऐतिहासिक ग्रन्थ यावत् खरतर के इतिहास में भी कोई उल्लेख नहीं होने पर भी खरतरगच्छाचार्य श्री जिनरत्नसूरिजी के पट्टधर श्री जिनचंद्रसूरि द्वारा श्री अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु की / प्रतिमा का प्रगटीकरण एवं पुनः प्रतिष्ठापन की गयी थी एवं तब से अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ जन-जन की आस्था का केन्द्र बना है। इस प्रकार का गलत इतिहास एक स्तवन का गलत अर्थघटन करते हुए प्रचारित किया है। जिसका पूरा जवाब पत्र के अन्त में परिशिष्ट में दिया है। ___ खरतरगच्छ के एक बहोत बडे वर्ग की ओर से अन्य गच्छों या मूर्तिपूजक समुदाय के सर्व गच्छों के समान रूप से पूज्य स्थानों पर दादागुरुदेवों के पगलिए, मूर्ति बैठाने आदि के माध्यम से उन स्थानों पर प्रत्यक्ष-परोक्ष अधिकार जमाने की एवं स्थानीय संघों में अब तक की एकता व प्रेमभाव में परस्पर फूट व नफरत, वैमनस्य एवं कोर्ट कचहरी तक के झगडों को खडा करने की प्रवृत्ति काफी लंबे समय से चल रही है, यह तो जगजाहिर बात है। बल्कि इस प्रवृत्ति को बहुत बडा वेग भारत भर के अनेक स्थानों पर घुम-घुम कर आपने खुद ने दिया है, यह तो और भी जगजाहिर बात है / बरसों से आपसी सौहार्द पूर्वक रह रहे तपागच्छ व खरतरगच्छ में (एवं पराकाष्ठा के रूप में खुद खरतरगच्छ में भी / ) भेद खडे करवाकर मंदिरों व तीर्थों आदि पर अनधिकृत वर्चस्व एवं कब्जा जमाने हेतु जगह-जगह संघों में मन को असह्य पीडा व महाव्यथा से भर देनेवाले अनेक-अनेक कार्य आपके एवं आपके पक्ष की ओर से हुए ही है और अब भी जारी है यह किस से छीपा है ? ऐसे एक नहीं ढेरों दुखद प्रसंगो को हम गिना सकते है, और उनके भरपूर सबूत भी दे सकते है। श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ तो स्वयं इस बात का जगजाहिर उदाहरण है कि आप किस तरह अनधिकृत चेष्टा एवं राजनीतिपूर्वक अन्य गच्छों के इतिहास को ढंककर अपने गच्छ की महिमा (?) बढाने की कोशिश में लगे हैं।