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स्वर्णिम - रेखा
नये समय की स्वर्णिम आभा, काल क्षितिज पर चमक रही । द्रुत चरणों से बढ़कर आगेआओ, तुम्हें पुकार रही ।
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धन्य धन्य वह धन्य जीव है, नया स्वप्न जिसने देखा । नये स्वप्न से चमका करती, जीवन की स्वर्णिम रेखा ॥
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उपाध्याय अमर मुनि
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