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परोपकार
ग्रीष्म में दवाग्नि जैसी झेल के प्रचण्ड धूप,
पथिकों को अति ठंडी छाया में बिठाता है। वर्षा में धूवाधार पानी निज शीष ओट,
नर, पशु - पक्षी भीग जाने से बचाता है ।। शीत में तुषार और पवन से त्राण पाने,
दीनों का तो जैसे यह सहारा बन जाता है । पर - उपकार - हीन नर - तन - धारी से तो,
वृक्ष ही है अच्छा, जो कि जड़ कहलाता है। दिनांक : ८ मई १९३६
बाघोर दुर्ग
है
खल
देखनी हो खल की प्रकृति कैसी होती है,
तो नाचते मयूर का स्वरूप लख लीजिए। अग्र भाग कैसा रम्य नाना भाँति - रंगयुत,
मानों दिन रात खड़े - खड़े देखा कीजिए। किन्तु जरा धूम - फिर पीछे की तरफ चल,
एक वार रूप - लोभी नेत्र खोल दीजिए। आगे कुछ और है, तो पीछे कुछ और ही है,
मात्र अग्र भाग 4 न रीझिए पतीजिए ।। दिनांक : १० मई १६३६
अजित निवास
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