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अनेकान्त दृष्टि
सरिता, तट - वर्ती नगरों को,
देती है सुख - शान्ति अपार । किन्तु बाढ़ में वही मचाती,
प्रलय काल - सा हाहाकार ।। अग्नि कृपा से चलता है सब,
पाक आदि जग का व्यवहार । किन्तु उसीसे क्षणभर में हा!
भस्म - राशि होता घर - बार ।। सघन जलद सूखो खेती में,
करता नव - जीवन संचार । वही पलक में कृषक - काल हो,
जड़ा मूल से करे संहार ॥ विष - लव अणु - सा भी दिखलाता,
यमपुर का झट रौद्र - द्वार । किन्तु, बचा दुःसाध्य रोग से,
बने कभी जीवन - दातार । भला - बुरा एकान्त जगत में,
कोई न देखा आँख पसार । अखिल सृष्टि गुण - दोषमयी है,
किस पर करिये द्वोष और प्यार ॥
दिनांक : २ मई १९३६ .
अजित-समुद्र
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