Book Title: Kavyanjali Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith AgraPage 31
________________ अछूत - क्रन्दन 'अछूत' ! क्या नाम रक्खा हमारा, चले हृदय पै रह्- रह दुधारा । घृणा टपकती प्रति अक्षरों से, किए सभी भाँति गिनें गिनावें नित हिन्दुओं में, नरेत्तरों से || घुसे हमारे बल कौंसिलों में । पता न पाया पर बन्धुता का, रहा सदा वर्तन शत्रुता तड़ाग में वस्त्र मलीन धोलें, स्वदेह श्वा शूकर भी पर न हम धो मुँह - हाथ पावें, अ - वारि मछली सम बिलबिलाते, तृषार्त्त भरने जल वहाँ दड़ादड़ होती कुटाई, निराश वापिस लौट बस आवें ॥ Jain Education International का ॥ कोलें । जहाँ भरे जल अब्दुल कसाई ॥ धजा निराली, प्रभु मन्दिरों की, - कूप जाते । बजें सदा पायल रंडियों की । परन्तु हम हा ! घुसने न पाते, जगत्पिता दर्श न पुत्र पाते ॥ उठा सड़ा कुक्कुर गोद लेते, गजब कि सस्नेह मुख चूम लेते । [ २२ ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50