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रज - कण
अहिंसा का विलक्षण शास्त्र है, बस हाथ में जिसके, सकल संसार का शासन सदा है, हाथ में उसके ।
सहधर्मिणी गर योग्य है, तो फिर गरीबी है कहाँ ? खारिज अकल से वह अगर, तो फिर अमीरी है कहाँ ?
व्यक्तित्व से जो शून्य है, वह वीर है बस नाम का, हाँ, प्राण-वजित शेष-पंजर, केशरी किस काम का।
अगस्त, १९३४
ESAR
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