Book Title: Kavyanjali Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith AgraPage 48
________________ रज - कण अहिंसा का विलक्षण शास्त्र है, बस हाथ में जिसके, सकल संसार का शासन सदा है, हाथ में उसके । सहधर्मिणी गर योग्य है, तो फिर गरीबी है कहाँ ? खारिज अकल से वह अगर, तो फिर अमीरी है कहाँ ? व्यक्तित्व से जो शून्य है, वह वीर है बस नाम का, हाँ, प्राण-वजित शेष-पंजर, केशरी किस काम का। अगस्त, १९३४ ESAR 60 [ ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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