Book Title: Kavyanjali Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith AgraPage 46
________________ कोकिल - अन्योक्ति कोकिल रसाल की निराली छवि वाली ऊँची चोटी पे मजे से बैठ फूली ना समाती है । नाज नखरे के साथ स्वादु औ' सरस मंजुमंजरी का भोजन यथाभिलाष खाती है ॥ नन्ही- नन्ही शाखाओं के कोमल हरित पत्रपुञ्ज पे फुदक चित्त हारि हा हा ! क्षण भर में रहेगा कुछ भी न, व्याध की बन्दूक से वह गोली गान गाती है । सुभाषित * सज्जनों के शीष पर संकट रहेंगे कितने दिन, चन्द्र को घेरे हुए बादल रहेंगे कितने दिन । * सैकड़ों कीजे जतन पर पाप कृति छुपती नहीं, दाबिये कितनी ही खाँसी की ठसक रुकती नहीं । ★ किस ऐठ में फिरता है पागल, यह हवा रहनी नहीं, मध्यान्ह - सी सन्ध्या - समय रवि की प्रभा रहनी नहीं । * गर्ज कर जड़ मेघ ! क्या तू बार - बार डरा रहा, देखले, बच्चू चला पश्चिम पवन वह आ रहा । ★ कृष्णतम से शुक्लतम बरसे पै बादल हो गए, दान से दानी यशस्वी हो के अपयश धो गए । Jain Education International क्योंकि - चली आती है । २६ सितम्बर, १९३६ - ★ दुर्जनों से मित्रता कर खूब आनन्द लूटिए, कौच फल ले हाथ में रो रो के मस्तक कूटिए । - [ ३७ ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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