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अन्तिम मंगल भगवन् ! भवाब्धि भीषण,
डूबे बड़े विचक्षण, बेड़ा जरा लंघा दे, बेड़ा लँघाने वाले !
अज्ञान - ध्वान्त फैला,
दिखता कहीं न गेला, ज्योती जरा जगादे, ज्योती जगाने वाले !
आलस्य अड़ा खड़ा है,
साहस मरा पड़ा है, मुर्दे जरा जिलादे, मुर्दे जिलाने वाले !
दुष्कर्म - शृंखला से,
जकड़ा पड़ा सदा से, बन्दी जरा छुड़ा दे, बन्दी छुड़ाने वाले !
मैं पूत्र, तू पिता है,
संसार जानता है, काबिल जरा बनादे, काबिल बनानेवाले !
नारनौल, १, जनवरी, १९३७
भगवान महावीर
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