Book Title: Kavyanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 44
________________ आदर्श - प्रचारक , जिसका मनोबल दिव्य हो, नहीं भीति का लवलेश हो, संसार को सत्पथ दिखाना, मात्र मुख्योद्देश हो । घन घोर संकट में भी रहता, धीर जो गिरिराज-सम, सच्चा प्रचारक है वही, जो हो सुसौम्य शशांक-सम ॥ जो भक्ति करता है नहीं, अपने विनश्वर काय की, बलिदान होता है समुद बलि वेदी पर जो न्याय की । नरवृन्द में बेखौफ नंगा सत्य जो कहता सदा, सच्चा प्रचारक है वही, जो हो न कटुभाषी कदा ॥ धनिकों के माया जाल में फँसता नहीं जो वीर वर, अन्त्यज जनों पर, निर्धनों पर, प्रेम जो करता प्रवर । जिस पर असर पड़ता कदाचित् भी नहीं निंदा-स्तवन का, सच्चा प्रचारक है वही, जो हो सदा सादे चलन का ॥ होता न डांवाडोल जिसका चित्त संशयवान हो, भगवान के वचनों पै जिसका पूर्ण दृढ़ श्रद्धान हो । पक्का हो अपनी आन का प्रण से नहीं हटता कभी, सच्चा प्रचारक है वही, झगड़ा न जो करता कभी ॥ हो चारुतम चारित्र जिसका, रूढ़ियों का काल हो, मेधावी हो, अकषायी हो, गुरु- ज्ञान का आगार हो । तन तोड़ श्रम कर के सदा कर्तव्य पालन जो करे, सच्चा प्रचारक है वही, जो घोरतम तम को हरे ॥ हिसार, चातुर्मास, १९८७ Jain Education International [ ३५ ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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