Book Title: Kavyanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 35
________________ क्यों न आया, क्या कहीं, मारा गया था तू सदा ।। सूखता था क्या बता, अब क्षेत्र सुन्दर शालि का। या बुलाया था किसी ने, फेर कर जप - मालिका ।। जो तू आया शीत ऋतु के, इस भयंकर काल में । बर्फ की चट्टानें जमती, हन्त ! अनु दिन ताल में । दीन मर्त्य क्षुधा - प्रपीड़ित, है न शक्ति शरीर में। जानु युग में सिर लगा, निश काटते स्व कुटीर में । वात - ताड़ित वल्लरी - सम, नग्न थर-थर काँपते । शीत के मारे किटा - किट, दाँत रह - रह बाजते ।। मत सतावे हा स्वयं मृत, दीन मानव - वृन्द को। छोड़ दे गर्जन व तर्जन, के व्यथा - कर द्वन्द्व को।। जाइए, अब जाइए, निज घाम सत्वर जाइए। [ २६ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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