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दिव्य जीवन
प्रतिक्षण क्षीण जीवन में अमर खुद को बना देना। भविष्यत की प्रजा को अपने पद-चिन्हों चला देना ॥
दुखी-दलितों की सेवा में विनय के साथ जुट जाना । अखिल वैभव बिना झिझके, बिना-ठिठके लुटा देना । असत्पथ भूल करके भी कभी स्वीकार ना करना। प्रलोभन में न फँसकर, सत्य-पथ पर सर कटा देना । क्रमागत कुप्रथाओं का, भ्रमों का, मूढताओं का। अधःपाती निशां मानव - जगत में से मिटा देना। जिनेश्वर बुद्ध हरि हर हो, मुहम्मद हो या ईशा हो। सभी सत्य-व्रतों के आगे, निज मस्तक झुका देना ।। सहस्राधिक प्रयत्नों से, मृतक - सम देश वालों में । नया जीवन नया उत्साह, नया युग ला दिखा देना । अधिक क्या, जन्म लेने का यह अन्तिम सार ले लेना। अमर निज मृत्यु के दिन शत्रओं को भी रुला देना ॥
कानौड, पौष, १९६२
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