Book Title: Kavyanjali
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 36
________________ देख अवसर फिर कभी, अपने समय पर आइए। अन्यथा दक्षिण समीरण, जब चलेगा तब बता। ढने पर भी न पाएगा, कहीं भी तेरा पता ॥ जो गरीबों को सताता है, न रहता वह यहाँ । जुल्मगर स्थायी नहीं, कहती सदा सर्वसहा ।। सन् १९३६ हंस हंस ! तुम्हारी दुग्ध - धौतै सी निर्मल काया; नहीं प्रशंसित, क्योंकि तुम्हीं सा बक भी पाया ।। मान सरोवर - वास श्रेष्ठता, क्या कथ गावें। जलचर वृन्द अनेक, जन्म जब वहीं बितावें। बड़े गर्व से अकड़ - धकड़, क्या मोती चुगते । तुम से मत्स्य प्रशस्य, मोती जो पैदा करते ॥ [ २७ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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