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देख अवसर फिर कभी,
अपने समय पर आइए। अन्यथा दक्षिण समीरण,
जब चलेगा तब बता। ढने पर भी न पाएगा,
कहीं भी तेरा पता ॥ जो गरीबों को सताता
है, न रहता वह यहाँ । जुल्मगर स्थायी नहीं, कहती सदा सर्वसहा ।।
सन् १९३६
हंस हंस ! तुम्हारी दुग्ध - धौतै
सी निर्मल काया; नहीं प्रशंसित, क्योंकि तुम्हीं
सा बक भी पाया ।। मान सरोवर - वास श्रेष्ठता,
क्या कथ गावें। जलचर वृन्द अनेक,
जन्म जब वहीं बितावें। बड़े गर्व से अकड़ - धकड़,
क्या मोती चुगते । तुम से मत्स्य प्रशस्य,
मोती जो पैदा करते ॥
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