Book Title: Kavyanjali Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith AgraPage 30
________________ वीर वन्दन प्रभो वीर ! तेरा ही केवल सहारा, जगत में न कोई शिवंकर हमारा। सभी ओर कर्मों का घेरा डला है, कृपा ऐसी कर कि उड़े पारा - पारा ॥ जला ज्ञान दीपक दिखा मार्ग सदसत्, भटकते फिरें, घोर धुंध पसारा। निकट शीघ्र - से - शीघ्र अपने बुलालो, पड़े ताकि जग में न आना दुबारा ।। महेन्द्रगढ़, १६३५ व्यर्थ-जीवन छल - छन्द अनेक प्रकार रचे, सदसत - विवेंक विनष्ट भया । सबके दिल में बन शल्य रहा, न करी कबहूँ तिलमात्र दया। मदमत्त बना विषयासव से, .. मिश्रित पी यौवन की विजया, अपना पर का हित साध सकाकुछ भी नहीं, व्यर्थ नृजन्म गया। खेतड़ी, सन् १९३६ [ २१ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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