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भाव और वह उपमा, जिसका जीवन में सत्य होना संभव होआजकल कविता जगत् की ये ही विशेषताएँ समझी जाती हैं ।
मुनिजी की कविता में मैं यही देखता हूँ कि ऊँचे भाव, ऊँचे आदर्श साधारण शब्दों में रखे गए हैं और ऐसा मालूम होता है कि कवि ने सर्वसाधाण के सामने अपना भावुक हृदय खोलकर रख दिया है । यद्यपि कविश्रीजी जैन धर्म के माने हुए उच्च कोटि के मुनि हैं, किन्तु इनकी कविता में 'साम्प्रदायिकता' लेशमात्र भी नहीं है । परमात्मा की प्रार्थना पढ़ने से शान्ति होती है। देश के विषय में पढ़ने से स्वदेश प्रेम जागृत होता है। शूद्रों (जिनको अब इस नाम से पुकारना भी अच्छा नहीं लगता) की दशा तो बड़े हो हृदयद्रावक शब्दों में वर्णन की गई है ।
इस देश में साधु - सन्यासी सदा से ही पूजनीय समझे जाते रहे हैं । किन्तु, वर्तमान काल में इनको अधिक संख्या और असन्तोषजनक आचरण ने इन सबकी देश पर एक प्रकार से भार - सा बना दिया है। जैन मुनियों ने साधुओं और प्रचारकों के लिए वास्तव में एक महान् सुन्दर आदर्श उपस्थित किया है, जिनसे उनका और देश का-दोनों ही का कल्याण हो सकता है ।
मुझे आशा ही नहीं दृढ़ विश्वास है कि श्रद्धेय मुनिजी के अतिशय मनोहर 'कविताओं से प्रत्येक हिन्दी पढ़ने वाले सज्जन, अवश्य ही लाभ उठाएंगे-युगानुसारी साधना-पथ पर अग्रसर होंगे।
नारनौल १६, नवंबर, १६३६
रामशरण चन्द मित्तल, एम, ए, एल. एल. बी, एडवोकेट
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