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अनुमान से कर्म सिद्धि
निश्चित युक्ति संगत अनुमान भी ज्ञान की प्रक्रिया है । श्रु तज्ञान का साधन है । अतः अनुमान यदि अकाट्य और सही है तो ज्ञान की धारा भी निश्चित सही है । अनुमान का भी मूल आधार प्रत्यक्ष होता ही है । जैसे अग्नि के अनुमान ज्ञान में धूम का प्रत्यक्ष होता है । धूम तथा अग्नि की अन्वय व्याप्ति होती है । व्याप्ति सम्बन्ध से निश्चित ज्ञान होता है । अतः धूम्र को देखकर अग्नि की सिद्धि करते हैं । उसी तरह संसार में सुख-दुख सामने दिखाई दे रहे हैं। सुख दुःख तो गुण स्वरूप है, अतः गुण दिखाई नहीं देते । गुण किसी द्रव्य के आधार पर ही रहते हैं । गुण-गुणी का अभेद सम्बन्ध रहता है । अतः गुण किसी गुणी में ही रहेंगे । सुख-दुःख वाला गुणी सुखी-दुःखी कहलाएगा । अब आप बताइये कि संसार. में सुखी-दुःखी लोग है कि नहीं ? इस बात में कौन ना कह सकेगा ? मना करना सम्भव ही नहीं हैं। सुखी-दुःखी प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। सैकड़ों नहीं लाखों करोड़ों हैं । हम स्वयं भी सुखी-दु:खी है, सुखी सुख के कारण है, दुःखी दु:ख के कारण है।
अब बात यह है कि सुख-दुःख क्या है ? कार्य है या कारण ? उदाहरणार्थ धुंए और अग्नि मै धूआं कार्य है उसका उत्पादक कारण अग्नि है । जैसे घड़ा कार्य है और मिट्टी कारण है। कारण नहीं होता तो कार्य बनता ही नही । अग्नि नहीं होती तो धूआं निकलता ही नहीं। मिट्टी नहीं होती तो घड़ा बनता ही नहीं। कार्य बिना कारण के नहीं होता, कार्य का कारण के साथ निश्चित सम्बन्ध है। उसी तरह यहां सोचिए कि सुख-दुख क्या है ? ये कार्य है या कारण है ? कारण तो हो नहीं सकते । कारण मानें तो सुख-दुःख से फिर आगे कार्य क्या मानें ? अतः कार्य ही मान सकते हैं । ये कार्य है तो इनका कारण क्या ? सुख-दुःख का कारण ईश्वर को मान नहीं सकते । चूकि सैकड़ों दोष आते हैं और ईश्वर का स्वरूप भी विकृत हो जाता हैं फिर भी कार्य स्वरूप सुख-दुःख ईश्वर के कारण सिद्ध नहीं हो सकते । अब कार्य है यह निश्चित है तो कारण भी निश्चित मानना ही पड़ेगा। चूकि कार्य कारण के बिना सम्भव नहीं हो सकता । अतः कार्य के लिए कारण अवश्य ही मानना पड़ता हैं।
सुख-दुःख कार्य के कारण रूप में कर्म को मान सकते हैं, कर्म ही एकमात्र कारण ऐसा सिद्ध होगा जो सर्वथा सर्व दोष रहित होगा। अग्नि से जैसे धुआं निकलता है । यहां अग्नि कारण और धूां कार्य है। मिट्टी घड़े के लिए कारण
कर्म की गति न्यारी
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