Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Author(s): Arunvijay
Publisher: ZZZ Unknown

Previous | Next

Page 164
________________ सूत्र में यह बन्ध चार प्रकार का बताया है। बंध प्रकृति बंध स्थिति बंध रस (अनुभाग) बंध प्रदेश बंध इन चारों के अर्थ को समझाते हुए नवतत्त्व में कहा है कि पयई सहावो वुत्तो, ठिई कालावहारणं । अणुभागो रसो णेप्रो, पएसो दल संचयो । प्रकृति का अर्थ है स्वभाव । किस पदार्थ का कैसा स्वभाव है ? इसके आधार पर कर्म की प्रकृतियों का कैसा स्वभाव है ? क्या उनकी प्रकृति है ? यह बात प्रकृति बंध के आधार पर कही जाएगी। स्थिति बंध में आत्मा के साथ लगे हुए कर्म बंध की काल स्थिति अवधि Time Limit कही जाएगी। अनुभाग का अर्थ है-"सत्यां स्थिती फलदान क्षमत्वादनुमाव बन्धः” अर्थात् कर्म की स्थिति रहते हुए कर्मों का शुभ-अशुभ फल कैसा मिलेगा ? उसका निर्णय अनुभाग बंध के आधार पर है । (४) "कर्म पुद्गल परिणाम लक्षण: प्रदश बंधः” कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं का प्रमाण कितना है यह प्रदेश बंध है । इस तरह ये मुख्य चार प्रकार के बंध हुए। जीव प्रदेशों के साथ कार्मण पुद्गलों का जब बंध होता है तब चार वस्तुप्रों का मुख्य रूप से निर्णय होता हैं। वे हैं प्रकृति-स्थिति-रस और प्रदेश । उदाहरण के लिए समझीए कि नव निर्माण हो रहे मकान का एक खंभा बन रहा है । वह सीमेन्ट का बन रहा है । अतः सीमेन्ट का स्वभाव विशेष कैसा है ? गरम है या ठंड़ा है ? या कैसा स्वभाव है यह देखना प्रकृति है। बना हुआ स्तम्भ कितने काल तक टिकेगा ? कितने वर्षों तक रहेगा यह स्थिति हुई। स्थिति काल के प्राधार पर निर्भर करती है। तीसरे प्रकार में रस देखा जाय कि-खंभा बनाने में सीमेन्ट में क्या रस मिलाया जाता है ? घी या दूध या पानी या तेल था क्या ? उसके आधार पर उसकी स्थिति रहेगी। तथा सीमेन्ट के उस खंभे में परमाणु कितनी संख्या में है ? सीमेन्ट का प्रमाण कितना है ? यह प्रदेश संख्या की बात है। ठीक इसी तरह आत्मा के साथ कर्म के बंध की बात आती है तब प्रकृति-स्थिति-रस और प्रदेश इन चार की विचारणा की जाती है । बंधे हुए कर्म का स्वभाव क्या है ? यह प्रकृति हुई । बंधा हुआ कर्म आत्मा के साथ कितने वर्षों तक चिपका हुआ रहेगा ? यह स्थिति बंध हुआ तो काल मर्यादा को बताता है । तीसरा रस बंध है । बंध की क्रिया कर्म की गति धारी १६३

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178