Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Author(s): Arunvijay
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 172
________________ पुद्गल परमाणुओं को खिंचता है । इस प्रदेश बंध के बाद रस-बंधादि के आधार पर उन कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं का एक पिण्ड बनेगा वह कर्म कहलाएगा। जब तक कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणु बाहरी आकाश में स्थित है तब तक वे कर्म नहीं कहलाएंगे । वहां तो वे पुद्गल परमाणु ही कहे जाएंगे । परन्तु आत्मा में आने के बाद इन कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं में तथा प्रकार के कषाय आदि के रस के आधार पर एक पिण्ड बन जाएगा वह कर्म कहलाएगा । जैसे-गेहूं के आटे में पानी डालकर मसलकर एक पिण्ड बनाया उसी तरह यहां कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं का पिण्ड बनता है । यही कार्मण शरीर एक सूक्ष्म शरीर के रूप में आत्मा के चारों तरफ लिपटा रहता है । आत्मा इसी सूक्ष्म कार्मण शरीर में बन्दिस्त रहती है । जन्म-जन्मान्तर में गति आदि इसी के आधार पर होती है । यह सूक्ष्मकार्मण शरीर अनादि काल से आत्मा के साथ लगा हुआ है। समुद्र में से पानी भाप बनकर जाता है, उडता है-बादल बनकर फिर बरसता है-फिर समुद्र में पानी आता है, इस तरह समुद्र का अस्तित्व वैसा ही बना रहता है। वैसे ही इस सूक्ष्म कार्मण शरीर (कर्म पिण्ड) में नए कार्मण पुद्गल परमाणु आते रहते हैं और पुराने जिनकी अवधि समाप्त हो चुकी है वे जाते रहते हैं। यह क्रिया सतत् चलती रहती है । कर्म पिण्ड रूप सक्ष्म कार्मण शरीर अनादि काल से आत्मा के साथ लगा हुआ ही है । अतः संसारी आत्मा सदा ही कर्मसहित-कर्म संयुक्त कर्ममय ही कहलाती है । अतः पूर्व कर्मोदय से नए कर्म बांधती है नए कर्म पुनः पुराने बनते हैं, उनका पुनः उदय होगा, पुनः नए कर्म का बन्ध होगा। कर्म संयोग से जीव का दुःखी होना, और दुःखी होकर फिर कर्म बांधना, यह अनन्त का चक्र चलता ही रहता है । इसीलिए कर्म संयोग के कारण आत्मा को अनन्तकाल से भटकना ही पड़ रहा है और भटक रही है। अब यदि धर्म के मंयोग से या माध्यम से जीव नए कर्म सर्वथा नहीं बांधते है ऐसी पूर्ण प्रतिज्ञा करले और पुराने कर्म सर्वथा क्षय करने ही है इस संकल्प पर चले तो सव्वपावप्पणासणो-सर्व पाप कर्मों का नाश होजाय तो आत्मा सदा के लिए मुक्त होजाय । मुक्त होना या मोक्ष में जाने का अर्थ ही है कि अनादि के कर्म बन्ध-कार्मण शरीर से सदा के लिए मुक्त होना, छुटकारा पाना। रोग निवृत्ति के लिए जैसे औषध है वैसे ही कर्म निवृत्ति के लिए धर्म है। यदि धर्म के मार्ग पर नहीं चढ़े तो कर्म की निवृत्ति के बजाय कर्म की प्रवृत्ति ही सतत् चलती रहेगी। कर्म बंध की पद्धति मकान बांधते समय सीमेंट-रेती में पानी डालकर जो मिश्रण किया जाता है उसमें भी मिश्रण की प्रक्रिया में पदार्थों पर आधार है। पानी यदि बिल्कुल कम होगा तो मिश्रण बरोबर नहीं होगा। कर्म की गति न्यारी १७१

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