Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Author(s): Arunvijay
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 176
________________ पैसे कमाए ही नहीं है तो फिर बैंक में जमा कहां से करते ? कर्म बांधे ही नहीं होते तो सत्ता में कहां से पड़े होते ? अतः कर्म बंध सबसे पहले मूल कारण है । अतः एक अपेक्षा से कर्म बंध को मूलभूत बीज अवस्था में स्वीकारना पड़ेगा। बीज होगा तो वृक्ष फल-फूल सब बनेंगे । अन्यथा नहीं । जीव प्रति समय आयुष्य के सिवाय सात-सात कर्म बांधता है । एक आंख की पलक में असंख्य समय होते हैं। आंख टिमटिमाई कि असंख्य समय का काल बीत जाता है। ऐसे असंख्य समयों में से १ समय लिया जाय, उस १ समय में जीव सात-सात कर्म बांधता है। और जब आयुष्य कर्म भी बांध ले तब आठ कर्म का बंध होता है। यह तो हई १ समय की बात । १ समय में ७ कर्म तो असंख्य समय में असंख्य X ७ कर्म बंधेगे। ऐसे तो सारे दिन में कितने समय लगेंगे । एक सप्ताह, पक्ष और महीने तथा वर्ष में कितने समय होंगे। इस तरह जीवन भर के ७०-८०-१०० वर्षों में जीव कितने कर्म बांधेगा ? चित्र के पहले बंध विभाग में एक मां अपने बच्चों के स्कून की पढ़ने की पुस्तकें सिगड़ी में जला रही है । यह पाप ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कराएगा। कर्म बंध तो पाप की प्रवृत्ति के अाधार पर ही होगा ! जैसे जैसे पाप होंगे वैसे वैसे कर्म बंध होगा । (२) उदय-कर्म के बन्ध के बाद दूसरी अवस्था उदय की आती है । उदय जैसे सूर्य का उदय होते ही प्रकाश फैल जाता है। वैसे ही बंधा हुआ कर्म उदय में आते ही सुख-दुःख का फल देगा। बीज पनपकर वृक्ष बना अब वृक्ष के फल-फूल लगते हैं. वैसे ही कर्म बीज जो बंध में थे वे नियत काल पर उदय में आते हैं । उदय में आते ही शुभ कर्म का उदय सुख रूप मिलेगा। तथा अनुभ कर्म पाप का उदय दुःख रूप मिलता है । जैसा कि चित्र में बताया गया है कि अशाता वेदनीय पाप कर्म का उदय हुआ अतः कई अस्पताल में वीमार पड़े हैं । (३) उदीरणा- बांधा हुआ कम निश्चित उदय में प्राएगा ही ऐसा कोई नियम नहीं है यदि कर्म बंध के बाद पश्चाताप-प्रायश्चितादि करके कर्म क्षय कर दिया तो वह कर्म नष्ट हो गया अब उदय में आने का प्रश्न हो नहीं रहेगा। यदि कर्म का क्षय नहीं किया है और कर्म की बंधी हुई काल अवधि से भी पहले उस कर्म को शीघ्र क्षय करने की इच्छा हो तो जानबूझकर समता आदि भाव से तीव्र वेदना अशाता आदि को सहन कर लेना उससे उदय का काल परिपक्व न होते हुए भी वे कर्म उदीरणा के माध्यम से उदय में खिचकर लाए जाते हैं । यह उदीरणा है । जैसे ग्राम के वृक्ष पर भी आम अपने समय पर पकते हैं, और उन्हीं आम को जबकि वे कच्चे हरे हैं, उस समय तोड लेते हैं और घास में पेक कर रखते हैं, विशेष गर्मी से जल्दी पकते है । तो जो आम १०-२० दिन बाद पकने वाले थे उनको ३ दिन में पका कर बेचने वाले बेचते हैं। उसी तरह उदयकाल न होने पर भी जिन कर्मों की उदीरणा की जाय अर्थात् खिंचकर लाकर विशेष समता आदि से भोग लेना यह उदीरणा कहलाती है । उदाहरणार्थ साधु महाराज केश लोच करते हैं, कर्म की गति म्यारी १७५

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