Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Author(s): Arunvijay
Publisher: ZZZ Unknown

Previous | Next

Page 150
________________ બેડીજેવું આયુષ્યકર્મ ચિત્રકાર જવું (६) चित्रकार - प्राटिस्ट के जैसा-नाम कर्म - एक कलाकार भिन्नभिन्न चित्र बनाता है । एक स्त्री-पुरुष के चित्र में जिस तरह हाथ-पैर, मुंह-नाककान - गला आदि बनाता है । रंग भरता है । एक पेपर पर कुछ भी नहीं था और कलम - ब्रश - रंग से सब कुछ बना देता है । ठीक वैसे ही वर्ण-गंध-स्पर्शादि रहित - अरूपी - अनामी - अनाकार आत्मा को नाम कर्म एक शरीर के ढाचे में ढाल देता है । अनाकार को साकार बना देता है । अंग- उपांगादि वाला अब वह हाथी - बैल - मनुष्यदेव - कीड़े-मकोड़े आदि के आकार में दिखाई देता है । अरूपी जीव अत्र काला - गोरा वर्ण-रंग वाला बनता है । अनामी का अब नाम व्यवहार होता है । इस तरह गति-जाति-शरीर आदि बनाने का कार्य नाम कर्म चित्रकार - आर्टिस्ट की तरह करता है । નામ ક્રમ अवधि में बांध देता है । परिणाम स्वरूप जीव को जन्ममरण धारण करने पड़ते हैं । मिले हुए देह के अन्दर निश्चित आयुष्य की अवधि तक रहना पड़ता है । स्वैरविहारी पक्षी को जैसे पिंजरे में कैद रहना पड़ता है उसी तरह आयुष्य कर्म के कारण जीव को इस देह पिंजरे में कैदी बनकर रहना पड़ता है । , કુંભારના ઘડા જેવું (७) कुम्हार के जैसा - गोत्र कर्म - गोत्र कर्म की तुलना कुम्हार के साथ की गई है । जिस तरह कुम्हार मंगल कलश, छोटे-बड़े तथा उच्च एवं निम्न दोनों श्रेणी के घड़े बनाता है । कोई सुवर्ण मोहरें भरने के लिए तद्योग्य ऊंचे घड़े ले जाते हैं तो कोई शराब भरने के लिए भी वैसे घड़े ले जाते । इस तरह उच्च एवं निम्न दोनों श्रेणो के घड़े की तरह गोत्र कर्म भी आत्मा को ऊंच-नीच गोत्र में ले जाता है । बैसे आत्मा की दृष्टि से सभी समान है । आत्मा अगुरुलघु स्वभाव वाली है । गुरु अर्थात् भारी, बड़ी और लघु अर्थात् हल्की, छोटी इत्यादि । उसके सामने निषेधार्थक 'अ' अक्षर प्राया है । अर्थात् अगुरुलघुआत्मा न छोटी है न बड़ी है । न भारी है न हल्की है । ગોત્રર્મ कर्म की गति न्यारी १४९

Loading...

Page Navigation
1 ... 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178