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प्रमाण
की क्रिया भी इससे मिलती-जुलती है । सर्जन डॉक्टर भी पेट पर चाकु चलाता है । चमड़ी कटती है, खून बहता है, पेट फटता है । परन्तु इस प्रकार की क्रिया करने वाले दोनों कर्ता का आशय भिन्न-भिन्न है । आशय हेतु में रात-दिन का अन्तर है । डॉक्टर का आशय मरते हुए को भी बचाने का है । जबकि खूनी का हेतु जिन्दे को भी मारने का है । अत: क्रिया में आशय - हेतु महत्व की भूमिका अदा करता है । तद्नुरूप कर्म बंध होता है । मरते हुए को भी बचाने का कार्य करने वाले सर्जन डॉक्टर को शुभ पुण्य कर्म लगते हैं और बचे हुए या जिन्दे को मारने का पंचेन्द्रिय हत्या का पाप खूनी को लगता है । पाप अशुभ कर्म है । इस प्रकार कर्म क्रिया जन्य है । जीव के अध्यवसाय - परिणाम पर आधारित है । इसीलिए कहा गया है कि - "क्रियाए कर्म - परिणामे बंघ" क्रिया के आधार पर कार्मण पुदुगन परमाणुओं का आगमन आत्मा में जरूर होता है । परन्तु बंध तो जीव के परिणाम के आधार पर होगा । थाली में आटा तो लिया परन्तु आटे का बंधन तो पानी के 'अनुसार होगा । उसी तरह किसी भी प्रकार की क्रिया के अनुसार कार्मण वर्गणाएं आत्मा में आ जाएगी । यह आने की प्राश्रव क्रिया हुई । परन्तु प्राश्रत्र के बाद जो बन्ध होता है वह बन्ध परिणाम के आधार पर होता है । जिस तरह आटे में पानी-घी - तेल आदि डाला जाता है और उसके आधार पर आटे का पिण्ड होता है । उसी तरह आत्मा में आए हुए कार्मण वर्गणा के जड़ पुद्गल परमाणुत्रों में जीव परिणाम - अध्यवसाय रूपी रस डालता है । तथा प्रकार के रस के आधार पर उन कार्मण परमाणुओं का पिण्ड - वह कर्म कहलाएगा। मात्र बाहरी आकाश प्रदेश में रही हुई कार्मण वर्गणा को कर्म नहीं कहा जाता । जैसे मात्र गेहूं के चूर्ण (आटे) पर वेलन चलाने से रोटी नहीं बनती। उसमें पानी डालकर आटे का पिण्ड बांधा जाय फिर रोटी बनेगी । उसी तरह कार्मण वर्गणा कर्म नहीं है । वे ही आत्मा के साथ मिलकर एक रस बन जाती है फिर उनका पिण्ड जो होता है वह कर्म की संज्ञा प्राप्त करता है । यह कार्मण पिण्ड कर्म कहलाता है । प्रायः परिणाम के अनुसार क्रिया होती है और प्रायः क्रिया के अनुरूप परिणाम भी होते हैं । परन्तु साम्यता और वैषम्य दोनों इनके बीच दिखाई देते हैं । परिणाम अच्छे भी हो और क्रिया का स्वरूप खराब भी हो सकता है । या परिणाम खराब भी हो और क्रिया अच्छी भी हो सकती है । उदाहरणार्थ - मन्दिर में दर्शन-पूजा करने आने की क्रिया अच्छी है परन्तु भगवान का मुकुट चोरने के परिणाम खराब से खराब होने के कारण दर्शनपूजा की क्रिया का पुण्य नहीं लगेगा परन्तु मुकुट चोरने के परिणामानुसार भयंकर अशुभ कर्म बन्ध होगा । इस तरह परिणाम और क्रिया की चतुर्भंगी बनेगी
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कर्म की गति न्यारी