Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Author(s): Arunvijay
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 158
________________ जड़ का जड़ के साथ मेल हो यह रासायनिक क्रिया तो फिर भी संभव है । परन्तु जड़ का चेतन के साथ मिश्रण कैसे हो सकता है। दूसरी तरफ शास्त्र यह कहता है कि आत्मा अमूर्त है और कार्मण वर्गणा मूर्त है। पुद्गल होने से मूतत्व यह पुद्गल का धर्म है । मूर्त स्वरूप पुद्गल ये अमूर्त आत्मा के साथ कैसे मिल सकते हैं ? और मिले तो भी मूर्त की अमूर्त पर क्या असर हो सकती है ? यह कैसे संभव है ? इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। मूर्त हो या अमूर्त हो दोनों मूलभूत द्रव्य स्वरूप तो अवश्य ही हैं । एक द्रव्य दूसरे से मिलता है । दूसरे में संमिश्रित होता है । फिर कहां प्रश्न रहा ? जिस तरह बुद्धि-ज्ञान के ऊपर मदिरा या ब्राह्मी की असर होती है। मदिरा के सेवन से उन्माद आता है । बुद्धि उन्मत होती है। शराबी विवेक दशा भूल जाता है। निरर्थक प्रलाप करने लगता है। मां को पत्नी और पत्नी को मां समझकर न बोलने जैसा बोलने लगता है। उसी शराबी का नशा उतर जाने के बाद उचित व्यवहार देखकर हम आश्चर्य व्यक्त नहीं करते । दूसरी वस्तु है-ब्राह्मी । ब्राह्मी के सेवन से उन्माद की स्थिति टल जाती है। मनुष्य की बुद्धि का बौद्धिक विकास होता है । समझदार बनता है। इसे आप क्या समझेंगे ? अमूर्त पर मूर्त का प्रभाव । इसी तरह चेतनात्मा जो अनादि काल से संसार में है। देहधारी ही है। ऐसी स्थिति में अमूर्त आत्मा यदि मूर्त पुद्गल द्रव्य ग्रहण करती है तो वे पुद्गल परमाणु आत्म प्रदेश पर चिपक कर आत्म गुणों को ढकने का काम करते हैं। जिस तरह धूल के रजकण विपुल मात्रा में आकर घर की टाइल्स पर छा जाते है, फिर टाइल्स की डिजाइन आदि स्पष्ट दिखाई नहीं देती। सब कुछ दब जाता है, धूल कण से ढक जाता है। ठीक उसी तरह कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणु जो सपूर्ण आत्मा के समस्त असंख्य प्रदेशों पर छा जाते हैं जिससे आत्म गुण ढक जाते हैं । दब जाते हैं। यही कर्मावरण है । कर्म है। पुद्गल ग्रहण एवं परिणमन जीव के साथ कामण वर्गणा के संमिश्रण की इस रासायनिक प्रक्रिया में दो क्रम है । पहले तो पुद्गल का ग्रहण होता है । इसे ही आश्रव मार्ग कहते हैं। आश्रव की क्रिया में सहायक कारण इन्द्रियां-अव्रत-कषाय-योग और क्रियाएं हैं । जबकि ग्रहण किये हुए पुद्गलों का आत्मा में परिणमन यह बंध तत्त्व कहलाता है । परिणमन यह क्रिया विशेष है । एक वस्तु अपना स्वरूप खो बैठती है और दूसरे में मिल जाती है । जिस तरह शक्कर जो पहले कण-कण स्वरूप में थी वह दूध में मिलकर तन्मय बन । गई । एकरस हो गई यह परिणमन है। अंग्रेजी में दो क्रियाएं प्रयोग में आती है। कर्म की गति न्यारी १५७

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