Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Author(s): Arunvijay
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 154
________________ जीव ही तथा प्रकार की क्रिया के लिए इन साधनों को निर्माण करता है । तभी इनके माध्यम से तथा प्रकार की क्रिया कर सकता है । इन क्रियाओं में शुभ भी होती है और अशुभ भी होती है । दोनों प्रकार की क्रिया का कर्ता चेतन जीव है । और सहायक करण - माध्यम - काया - वचन तथा मन है । इन्हीं के जरीए आत्मा कर्म से संसक्त होती है । उमास्वाति महाराज ने तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में कहा है कि" काय - वाड. मनः कर्मयोगः” । काया-वचन और मन के द्वारा कर्म का संयोग होता है । तथा प्रकार की क्रिया करता हुआ जीव कर्म से संयोग करता है । कार्मण वर्गणा पुद्गल परमाणुओं का आत्मा से संयोग होता है । यह कर्म योग आगे बंध में अच्छी तरह बंधकर एक रस हो जाता है । के क्रिया परक कर्म की व्याख्या "डुकिंग - करणे " - क्रि = करणें क्रिया विशेष से जन्य है । धातुकोष की क्रिया परक है । । अतः जीव ही कर्म का कर्म एक शब्द है संस्कृत के धातु से कर्म शब्द बना है । अतः कर्म श्रतः कर्म की क्रिया परक व्याख्या करते हुए देवेन्द्रसूरि ने प्रथम कर्म ग्रन्थ में लिखा है कि - "किरइ जीएग हेउहि जेरण तो भन्नए कम्म" अर्थात् जीव के द्वारा हेतु पूर्वक जो क्रिया की जाय, या जो कुछ किया जाय वह कर्म कहा जाता है । इस सूत्र के अन्दर एक-एक शब्द का पूरा महत्व है । एक भी शब्द निकाल नहीं सकते । उहि - हेतु शब्द पर ज्यादा भार दिया गया है । मात्र क्रिया कर्म नहीं है । परन्तु हेतु पूर्वक की गई क्रिया कर्म है । क्रिया का कर्ता जीव है । कर्ता के बिना क्रिया हो नहीं सकती उसी तरह जीव के बिना कर्म नहीं हो सकते । कर्ता है | कर्म क्रिया जन्य है । हेतु - आशय - भात्र या अध्यवसाय के संदर्भ में है । क्रिया चाहे जैसी भी हो परन्तु हेतुं कैसा है ? इस पर बड़ा आधार है । संभव है बाहर से किया अच्छी नहीं भी दिखाई देगी । क्रिया का बाह्य स्वरूप अप्रिय भी होगा परन्तु हेतु - आशय अच्छा भी हो सकता है । उदाहरणार्थं मां बच्चे का बुखार उतारने के लिए कडवी दवाई पिलाती है । आशय जानती है कि इससे बुखार जल्दी उतर जाएगा । बेटा अच्छा हो जाएगा । परन्तु क्रिया का बाहरी स्वरूप अच्छा नहीं लगेगा। बेटा रोता है चिल्लाता है । और मां पकड़ कर जबरदस्ती से कड़वी दवाई पिलाती है । दूसरी एक क्रिया है । पेट फाडना । इस प्रकार की क्रिया के कर्ता दो प्रकार के होते है । एक तो सर्जन डॉक्टर और दूसरा खूनी, छूरा चलाने वाला अपराधी । छूरा चलाने वाला भी पेट पर छूरा चलाकर भाग जाता है । पेट पर चीरा पड़ जाता है, चमड़ी कट जाती है और खून बहने लगता है । दिखने में डॉक्टर कर्म की गति न्यारी १५३

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