Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Author(s): Arunvijay
Publisher: ZZZ Unknown

Previous | Next

Page 147
________________ वाली आत्मा की अक्षय स्थिति है । परन्तु इस कर्म आत्मा को जन्म-मरण के काल चक्र में कारण जीव को देव मनुष्यादि ४ गति में मिले बन्दिस्त बनकर रहना पड़ता है । जिस तरह उदित हुए सूर्य पर चारों तरफ से घनघोर घटाटोप काले श्याम बादल छा जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप सूर्य की किरणें - पृथ्वीतल पर नहीं पहुंच पाती है । अन्धेरा छा जाता है । रात्री का भ्रम भी कभी-कभी पैदा कर देता है । सूर्य के होते हुए बादलों के कारण यह स्थिति निर्माण हो जाती है । ठीक इसी तरह आत्मा भी एक ज्ञानवान अनन्त शक्ति आदि गुणवान तेजस्वी सूर्य समान प्रकाशपुञ्जवद् द्रव्य है । सूर्य जैसे प्रकाश फैलाता है वैसे आत्मा ज्ञानादि गुणों का आविर्भाव करती है । परन्तु आत्मा पर कई परदे आ जाय तो क्या स्थिति हो ? सूर्य पर बादलों की तरह आत्मा पर कर्मावरण रूपी बादल छा जाते हैं । अब उन आवरक बादलों से कितना प्रकाश प्रकट होगा ? उदाहरणार्थ सूर्य का प्रकाश काले घटाटोप बादलों में से कितना आता है उतना ही आत्मा में से ज्ञानादि अल्पमात्रा में बाहर प्रकट होगा । आठ कर्म के आठ आवरण है । इनमें से निकलता हुआ जो अल्पतम मात्रा में ज्ञानादि गुणों का प्रकाश होगा वही नाम मात्र व्यवहार में आएगा । सूर्य पर से बादल हवा के झोके से खिसक भी जाते हैं । परन्तु आत्मा पर से कर्मावरण इतनी जल्दी या हवा के झोके से नहीं हट जाते । परिणाम स्वरूप आत्मा पर कर्म डट कर जम जाते हैं । यह कर्मावरण का कार्य है । इन आठ कर्मों के कार्य क्षेत्र को समझने के लिए शास्त्रकार महर्षियों ने ८ उदाहरण दिये हैं । उन्हें समझने से उनकी साम्यता सादृश्यता के कारण आठ कर्म भी समझ में आ जाएंगे । वे दृष्टान्त निम्न प्रकार है । નાત્મ गुण पर आवरण रूप आकर प्रायुष्य फसा देता है । इसी आयुष्य कर्म के शरीर में नियत काल अवधि तक १४६ कर्म की गति न्यारी

Loading...

Page Navigation
1 ... 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178