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इस चित्र में वर्ण गंध-रस - स्पर्शादि बताए गए हैं। काला-हरा-लालपीला - सफेद ये पांच प्रकार के वर्ण होते हैं । सुगन्ध तथा दुर्गन्ध २ गंध हैं । खट्टातिखा - मीठा-तुरा एवं कडवा ये पांच प्रकार के रस हैं । तथा-शीत-उष्ण, स्निग्धरूक्ष, लघु गुरू अर्थात् हल्का - भारी, तथा मृदु-कर्कश ये ८ प्रकार के स्पर्श हैं । अजीव तत्त्व के पुद्गल विभाग का यह विवेचन किया है । चूंकि कर्म भी पौद्गलिक है पुद्गल परमाणुओं से जन्य है । अत: कर्म की पौद्गलिकता को समझने के लिए पुद्गल को पहचानना जरूरी है इसलिए पुद्गल का स्पष्ट विवेचन किया है। पुद्गल एक स्वतन्त्र द्रव्य है । यह जीव नहीं सजीव नहीं अजीव द्रव्य है, इतना ख्याल आना जरूरी है चेतन आत्मा ही एक मात्र जीव द्रव्य है । जबकि अन्य सभी अजीव द्रव्य है । अजीव द्रव्य के ५ भेदों में पांचवा भेद जो पुद्गल का है उसका क्या लक्षण हैं ? तथा क्या गुण धर्म है यह विवेचन यहां पर किया है । इससे पुद्गल का स्वरूप स्पष्ट समझ में प्राजाय यह जरूरी है । समस्त संसार की अनन्त जड़ वस्तुएं सभी पोद्गलिक है । जो भी प्रांखों से दिखाई देती है ऐसी किसी न किसी प्रकार के वर्ण-गंध-स्पर्शादि वाली वस्तुएं पौद्गलिक हैं । पुद्गल जन्य पदार्थ दृश्यमान जगत सब पौद्गलिक है। यहां तक की हमारा शरीर भी पौद्गलिक है । वह भी पुद्गल से बना है । तथा ग्रात्मा पर लगते कर्म भी पौद्गलिक है । ये शरीर तथा कर्मादि किस तरह पौद्गलिक है ? किन पुद्गल परमाणुत्रों से बनते हैं ? क्या इनके घटक द्रव्य है ? इसका विवेचन आगे किया जा रहा है ।
परमाणु वर्गणा स्वरूप
जैन शास्त्र में जिसे पुद्गल कहा है उसे ही आधुनिक विज्ञान ने MATTER पदार्थ कहा है । पुद्गल यह जैन शास्त्रों द्वारा ही प्रयुक्त एक विशेष प्रर्थवाला शब्द है । इस शब्द का प्रयोग जैन शास्त्र बाह्य नहीं मिलता । पुद्गल की ४ अवस्था में जिसे स्कंध कहा जाता है उसे विज्ञान Molecule कहता है । और परमाणु को Atom कहा है । यह समस्त ब्रह्माण्ड अनन्तानन्त परमाणुओं से भरा हुआ है । पुदगल द्रव्य का स्वतन्त्र अस्तित्व दो स्वरूप में है । एक परमाणु स्वरूप और दूसरा स्कंध स्वरूप है । महा समर्थ ज्ञानी की ज्ञानधारा में भी जिसके दो भाग संभव नहीं है ऐसा निर्विभाज्य सूक्ष्मतम पुद्गल का अणु ही परमाणु स्वरूप कहलाता है । यही परमाणु २-४-६ आदि अधिक संख्या में एकत्रित हुए हों तो उन्हें स्कंध जाएगा । फिर वे द्वय कस्कंध, व्यणुकस्कंध, चतुणुं स्कंध, पंचाणुकस्कंध आदि एक एक अणु की वृद्धि के आकार पर वे उतने परमाणुओं के बने हुए स्कंध कहलाएंगे ।
कर्म की गति न्यारी
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