Book Title: Kalpasutram
Author(s): Kanakvimalsuri
Publisher: Muktivimal Jain Granthmala

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Page 415
________________ श्रीकल्प मुक्तावल्यां श्री ऋषम चरित्रम् // 38 // स्पष्टार्य:-मणःत्ति मनःपर्याय ज्ञानम्-परमोहि, त्ति-परमावधिः- यस्मिन्नुत्पन्नेऽन्तर्मुहूर्तान्तः केवलोत्पतिः-पुलाए, त्ति पुलाकलब्धिः-यया लब्ध्या चक्रवर्ति सैन्यमपि-चूर्णीकत्तुं समर्थः स्यात्-आहारग, त्ति आहारकशरीरलब्धि:- खवग' त्ति क्षपकश्रेणिः- उवसमत्ति-उपशमश्रेणि:- कप्प, ति जिनकल्पः संजमतिअ,' ति संयमत्रिक परिहारविशुद्धिक 1 सूक्ष्मसम्पराय 2 यथाख्यात चारित्र लक्षणं 3 // अत्रापि कविः // श्रीजम्बूस्वामीसौभाग्य, वर्ण्यते केन धीपरम् / यम्प्राप्य नान्यमद्यापि, मोक्षश्रीरिह वाञ्छति // 1 // मू-पा-थेरस्स णं अज्जजंबूणामस्स कासवगुत्तस्स अज्जप्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायणसगुत्ते / थेरस्स ण अज्जप्पभवस्स कच्चायणसगुत्तस्स अजसिज्जंभवे थेरे अन्तेवासी मणगपिया वच्छसगुत्ते थेरस्सणं अज्जसिज्जंभवस्स मणगपिउणो वच्छसगुत्तस्स अज्जजसभदे थेरे अन्तेवासी तुंगियायणसगुत्ते // 5 // व्याख्या--स्थविरस्य आर्यजम्बूनामकस्य काश्यपगोत्रस्य आर्यप्रभवः स्थविरः शिष्योऽभूत कात्यायनगोत्रः स्थविरस्य आर्यप्रभवस्य कात्यायनगोत्रस्य-आर्यशय्यंभवः स्थविरः शिष्यः कीदृशः-इत्याह-मनकस्य पिता वत्सगोत्र:अन्यदा-एकदा प्रभवस्वामी, स्थापनार्थ निजास्पदे / योग्यव्यक्तिं गणे सङ्के, ददिवानुपयोगकम् // 1 // तथाविधो न ना दृष्ठ, स्तदा चापरतीर्थके / उपयोग ददौ सम्यग् , ज्ञानेन ज्ञानवारिधिः // 2 // तदा राजगृहे यज्ञ, यजन् दृष्टः शुभाकृतिः / शय्यभदो महाभट्टः, सदगुणाञ्चित विग्रहः // 3 // तत्र गत्वा च साधुभ्या-महो कष्टपरम्परा / तत्त्वं न ज्ञायते सम्य-गिति वाक्येन बोधितः // 4 // // 385 //

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