Book Title: Kalpasutram
Author(s): Kanakvimalsuri
Publisher: Muktivimal Jain Granthmala
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________________ श्रीकल्पमुक्तावल्यां श्री समाचारि // 47 // श्रुत्वोदयन भूपालः, सङ्ग्रामाय त्वराऽचलत् , जित्वा बध्वा च तं युद्धे, कुशलो रणकर्मणि // मददासीपतिरेषोऽस्ति, ललाटेऽस्य व्यसूचयत , आगच्छन् नगरी पश्चात् , सह तेन महीपतिः // 35 // दशपुरपुरे तस्थौ, वर्षाकाले समागते, उपवासं स्वयंश्चक्रे, पुण्ये वार्षिकपर्वणि // 36 // सूपकारो नृपादिष्ट, चण्डप्रद्योतभूपतिम् , भोजनार्थ पप्रच्छासौ, विषभीत्येति प्राह तम् // 37 // श्रावकोऽस्मि ततो मेऽपि, चोपवासोऽद्य वर्तते, सूपकारोऽपि भूपाय, व्यजिज्ञपत्तदुत्तरम् // 39 // उदयनस्तदा दध्यौ, घूर्तताऽस्य तथाऽप्पयम् , साधर्मिको ममास्तीह, क्षम्य एव ततो मया // 39 // अस्मिन्नक्षमिते मे नो, प्रतिक्रमणमुत्तमम् , इति स बन्धनान्मृक्तः, सर्व तस्य पुनर्ददौ // 40 // दासीपतीतिविन्यास-च्छादनायास्य मस्तके, मुकुटं ददिवान् स्वस्य, क्षमितश्च पुनः पुनः // 41 // चण्डप्रद्योतभूपाल, मुदयन महीपतिः, उज्जयिन्यां ततः प्रीत्या, प्रेषयामास शान्तिमान् // 42 // आराधकत्वमत्रास्ति, श्रीउदयन भूपतेः, आराधकत्वं न चण्डस्य, चोपशान्तेरभावतः // 43 // // कचिदुभयोरप्याराधकत्वमित्याह // कौशाम्ब्यां वन्दितुं कापि, स्वविमानेन भक्तितः, सूर्याचन्द्रमसौ वीरं, विश्ववन्धं समागतौ // 44 // चतुरा चन्दना ज्ञात्वा, कालमस्तमयं ततः, स्वकस्थानं गता किच, तस्थौ तत्र मृगावती // 45 // अज्ञातसमया साध्वी, शृण्वन्ती प्रभुदेशनाम् , अस्तंगते रवौ चन्द्रे, तमसि सति विस्तृते // 46 // रात्रि विज्ञाय भीताऽसावुपाश्रयमथागमत् , ईर्ष्यापथिकीञ्चक्रे, विधिना च शुभाशया // 47 // 118981

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