Book Title: Kalpasutra Moolpath
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Bhimsinh Manek Shravak Mumbai

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Page 55
________________ कालंसि, पमुश्यपक्कीखिएसु जणवएसु, पुत्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इत्युत्तरादि । नस्कत्तेणं जोगमुवागएणं आरुग्गा आरुग्गं दारयं पयाया ॥ ९६ ॥ जं रयणिं च णं समणे नगवं महावीरे जाए सा णं रयणी बहूहिं देवेहिं देवीहि य उवयंतेहिं नप्पयंतेदि य नप्पिजेलमाणनूआ कहकदगनूा आवि हुना ॥ एyal * रयणिं च णं समणे जगवं महावीरे जाए तं रयणिं च णं बहवे वेसमणकुंमधारी ति रियजनगा देवा सिफचरायन्नवणंसि हिरमवासं च सुवामवास च वयरवासं च वनवासं : *च आनरणवासं च पत्तवासं च पुप्फवासं च फलवासं च बीअवासं च मल्लवासं च गंधवासं च चुमवासं च वसवासं च वसुदारवासं चं वासिंसु ॥ ए ॥ तएणं से सिपने खत्तिए नवणवश्-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं तिबयरजम्मणानिसेयमहिमाए. १ माला० (क० कि०) देवुज्जोए एगालोए देवसन्निवाए उप्पिजल० (क० कि०); २ घण्णवासं च; ३ पियठ्याए पिअं निवेएमो, पिअं भे भवउ मउडवजं जहामालिअं ओमयं मत्थए पत्थए धोअइ (क० कि०) Jain Education internations For Private Personel Use Only Whaw.jainelibrary.org

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